मुझे इश्क़ ने ये सबक़ दिया, के ना हिज्र है ना विसाल है,
उसी ज़ात का मैं ज़हूर हूँ, ये जमाल उसी का जमाल है
मेरी बंदगी है तो बस यही, के करूँ मैं अपनी ही बंदगी,
यही ज़िक्र है यही फ़िक्र है , यही हाल है यही क़ाल है
वही सूरत और वही आइना, ये ख़याल दिल से जो जाए ना ,
तो वो रूबरू है हर आइना, यही शान शाने कमाल है।
मैं फ़िदाए ख़ादिम ए पाक हूँ , दरे बारगाह की ख़ाक हूँ ,
वो समा के मुझ में ये कहते हैं , के ‘अज़ीज’ ग़ैर मुहाल है
हज़रत अज़ीज़ुल्लाह सफ़ीपुरी
The Qawwali Project, is an initiative conceptualized by Manjari Chaturvedi where the untold story of Qawwali unfolds through the eyes of photographers. The practitioners are photo-documented with their performance art, their lives and their association with the Sufi shrines where they perform. Qawwali is the performance art and Qawwal is the practitioner. This is an attempt by the Sufi Kathak Foundation to document the traditions as they exist at the shrines itself.
You are all set!
Your first Culture Weekly will arrive this week.