आर्यभट्ट: भारत का पहला उपग्रह

भारत के लिए पहला प्रक्षेपण (लॉन्च)

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रोशन गावंडो द्वारा चित्रण

Roshan Gawand का Aryabhata, India's first satellite in 1975

रूस के अस्त्रखान ओब्लास्ट में बंजर दिखने वाली एक लॉन्च साइट (प्रक्षेपण स्थल) में 19 अप्रैल, 1975 को, रॉकेट थ्रस्टर्स धधक उठे और पॉलीहेड्रॉन आकार के एक बड़े ऑब्जेक्ट को अंतरिक्ष में भेजा गया. यह ऑब्जेक्ट, भारत का पहला मानवरहित उपग्रह “आर्यभट्ट’’ था. भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण था.

Roshan Gawand का Aryabhata, India's first satellite in 1975

उस लॉन्चिंग के साथ, भारत दुनिया का 11वां ऐसा देश बन गया जिसने किसी उपग्रह को ऑर्बिट यानी कक्षा में भेजा हो. सबसे अहम बात यह है कि ऑर्यभट्ट ने वह नींव तैयार की जिस पर आगे चलकर भारत ने अपने प्रभावशाली अंतरिक्ष कार्यक्रम को खड़ा किया. आज, भारत उन चंद देशों में शामिल है जो चंद्रमा पर कोई प्रोब (उपग्रह) भेजने में कामयाब रहे हैं. भारत उन चार देशों में से भी एक है जो किसी उपग्रह को अंतरग्रहीय कक्षा में पहुंचाने में सफल रहे हैं.

Roshan Gawand का Aryabhata, India's first satellite in 1975

अंतरिक्ष तक पहुंचने का सफ़र

भारत के पहले उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजने का सफ़र 1960 के दशक में, रोहिणी रॉकेट कार्यक्रम की सफलता के साथ शुरू हुआ. इन रॉकेट को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने तैयार किया था. रोहिणी, मौसम विज्ञान और वायुमंडल से जुड़े शोध कार्यों के लिए तैयार किए गए "साउंडिंग" रॉकेट की एक सीरीज़ थी.

TIFR Archives का Bhabha with Cecil Powell, Patrick Blackett and Vikram SarabhaiTata Institute of Fundamental Research

इसके बाद, 1970 के दशक की शुरुआत में, इसरो के संस्थापक, विक्रम साराभाई ने प्रोजेक्ट आर्यभट्ट के लिए वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की एक टीम नियुक्त की. इस टीम का नेतृत्व, अंतरिक्ष वैज्ञानिक, डॉ॰ उडुपी रामचंद्र राव ने किया. बेंगलुरु में उपग्रह असेंबल करने का यह पूरा कार्यक्रम उनके मार्गदर्शन में चला.

National Aeronautics Space Administration, The National Archives at Philadelphia, और NASA की Scout Launch Vehicle, L-60-1189 (1960)U.S. National Archives

शीत युद्ध के दौर की तनातनी और रुकावटें

शुरुआत में, उपग्रह को अमेरिका की मदद से लॉन्च किया जाना था. इसके लिए, स्काउट लॉन्च व्हीकल की मदद ली जानी थी जो कि एक मल्टी स्टेज रॉकेट था. इसे भरोसेमंद होने के साथ-साथ भारत के लिए किफ़ायती भी माना जा रहा था.

लेखक: Larry BurrowsLIFE Photo Collection

1971 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारतीय राजदूत के ज़रिए रूस से एक संदेश मिला. संदेश में उनसे कहा गया था कि सोवियत अकेडमी ऑफ़ साइंसेज़, भारत के पहले उपग्रह को लॉन्च करने में मदद के लिए तैयार है. इसमें कोई शक नहीं कि रूस, भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी की संभावना से चिंता में पड़ गया था. अंत में, भारत ने रूस की पेशकश को स्वीकार करने और आर्यभट्ट को सोवियत संघ की मदद से लॉन्च करने का फ़ैसला किया.

Roshan Gawand का Aryabhata, India's first satellite in 1975

हालांकि, लॉन्च की तारीख तय होने से पहले ही, इसरो के संस्थापक, विक्रम साराभाई का निधन हो गया. उनके निधन से पूरा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ठप पड़ गया और उपग्रह प्रोजेक्ट को लेकर चिंता बढ़ने लगी. इस मुश्किल घड़ी में, डॉ राव और उनकी टीम ने अपना हौसला बनाए रखा और हर चुनौती को पीछे छोड़ते हुए प्रोजेक्ट को पूरा किया. आखिरकार, उपग्रह के लॉन्च की तारीख तय हो गई.

Roshan Gawand का Aryabhata, India's first satellite in 1975

“आर्यभट्ट” नाम रखने की कहानी

अब तक उपग्रह का कोई नाम तय नहीं हुआ था. वैज्ञानिकों की टीम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रुख किया और उनसे अनुरोध किया कि वे इस उपग्रह को कोई नाम दें. उन्होंने इसे ‘‘आर्यभट्ट” नाम दिया, जो पांचवीं सदी (कॉमन ऐरा) के महान गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी थे. वे दूसरी कई खोजों के साथ-साथ, ध्वन्यात्मक संख्या संकेतन प्रणाली (फ़ोनेमिक नंबर नोटेशन सिस्टम) विकसित करने के लिए जाने जाते हैं. इसमें, संख्याओं को व्यंजन-स्वर एकाक्षरी शब्दों (मोनोसिलेबल्स) के ज़रिए दर्शाया जाता है.

Roshan Gawand का Aryabhata, India's first satellite in 1975

विरासत

पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलते ही, आर्यभट्ट उपग्रह ने बहुमूल्य डेटा रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया था. इसमें ऐसे उपकरण लगे थे जो धरती के आयनोस्फ़ेयर की स्थितियों के बारे में ज़्यादा जानकारी हासिल कर सकते थे, सूर्य से निकलने वाली गामा किरणों और न्यूट्रॉन को माप सकते थे, और एक्स-रे खगोल विज्ञान की शोध कर सकते थे.

Roshan Gawand का Aryabhata, India's first satellite in 1975

ऑर्बिट में पांच दिन तक रहने के बाद, बिजली की खराबी के चलते आर्यभट्ट के उपकरण बंद करने पड़े. फिर भी, इन पांच दिनों के दौरान इसने अंतरिक्ष में बहुमूल्य सूचनाएं इकट्ठा कीं. इस मिशन से इतना ज़रूर पता चला कि भारत एक्स-रे के किसी सोर्स (सीवाईजी-एक्स1) का निरीक्षण कर सकता है.

Roshan Gawand का Aryabhata, India's first satellite in 1975

इस लॉन्च ने भविष्य के उपग्रह कार्यक्रमों के लिए एक आधार तैयार करने का काम किया. साथ ही, एक राह भी दिखाई जिस पर चलकर भारत अंतरिक्ष में नई मंज़िलें तलाश सका. सबसे ज़रूरी बात यह थी कि इस लॉन्च ने देश और पूरी दुनिया को बता दिया कि भारत का नया-नवेला अंतरिक्ष कार्यक्रम जितना महत्वाकांक्षी था उतना ही सक्षम भी था. आर्यभट्ट उपग्रह, भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा एक प्रेरणा रहेगा.

आभार: कहानी

रोशन गावंडो द्वारा चित्रण

क्रेडिट: सभी मीडिया
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