Raj Kapoor, Nargis, and Dilip Kumar in the film "Andaz" (1947)
हिन्दी सिनेमा के सुनहरे दौर को खास बनाने वाले १० प्रभावशाली चेहरों, फ़िल्मों (और आवाज़ों) पर एक नज़र डालें.
१. "अंदाज़", 1949
डगलस सर्क के क्लासिक मेलोड्रामा की तरह ही, "अंदाज़" एक उलझी हुई ब्लैक ऐंड व्हाइट मेलोड्रामा फ़िल्म थी, जिसके निर्देशक महबूब खान थे. इस फ़िल्म ने भारतीय सिनेमा में एक नए दौर की शुरुआत की, जिसकी छाप गहरी और लंबे समय तक रही. प्रेम त्रिकोण पर आधारित इस फ़िल्म में बिलकुल आधुनिक रहन-सहन दिखाया गया है. इसमें महिला और पुरुष के बीच के संबंधों को, बड़ी खूबसूरती से पुराने ज़माने की सोच से आधुनिक समाज के तौर तरीकों में बदलते दिखाया गया है. इस फ़िल्म ने इसके सितारों: नरगिस, दिलीप कुमार, और राज कपूर को बुलंदियों पर पहुंचाया.
Raj Kapoor, Nargis, and Dilip Kumar in the film "Andaz" (1947)
"अंदाज़" (१९४९) फ़िल्म का एक दृश्य, कॉपीराइट के मालिक/लेखक महबूब प्रोडक्शंस प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई, भारत के सौजन्य से मिली फ़ोटो
Film still of actor Raj Kapoor and Nargis, from the Hindi film Awara (1951/1951)Museum of Art & Photography
2. राज कपूर, अभिनेता/निर्देशक
अभिनेता/निर्देशक राज कपूर और नरगिस की फ़िल्म "आवारा" (१९५१) का एक दृश्य, म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट ऐंड फ़ोटोग्राफ़ी, १९५०
अभिनेता/निर्देशक राज कपूर ने हिन्दी सिनेमा के परंपरागत तरीकों में काम करते हुए, इसे कहानी सुनाने के नए तरीकों, संगीत के बेहतरीन इस्तेमाल, नए दौर के अभिनय, और नए नज़रिए से समृद्ध किया. उन्होंने संगीतकार शंकर-जयकिशन, गीतकार शैलेंद्र और हसरत जयपुरी, और पटकथा लेखक के॰ए॰ अब्बास और वी॰पी॰ साठे के साथ मिलकर एक बेहतरीन टीम बनाई. तब से लेकर आज तक, अभिनेत्री नरगिस (ऊपर फ़ोटो में मौजूद) और राज कपूर को हिन्दी फ़िल्म की सबसे मशहूर रोमैंटिक जोड़ी माना जाता है. साल १९५१ में फ़िल्म "आवारा" के रिलीज़ होने के साथ, राज कपूर भारत के पहले अंतरराष्ट्रीय सितारा बन गए. उन्हें अफ़्रीका, रूस, मध्य पूर्व, और चीन में काफ़ी पसंद किया गया.
Film still of actor Balraj Sahani, from the Hindi film Do Bigha Zamin (1953/1953)Museum of Art & Photography
3. "दो बीघा ज़मीन", 1953
क्लासिक फ़िल्म "दो बीघा ज़मीन" में बलराज साहनी, म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट ऐंड फ़ोटोग्राफ़ी, १९५३
किसानों की पीड़ा पर बनी भारतीय फ़िल्म "दो बीघा ज़मीन" (१९५३) की भावनात्मक कहानी का कोई तोड़ नहीं है. इस फ़िल्म में बलराज साहनी ने एक गरीब किसान के रूप में शानदार अभिनय किया है, जिसे अपनी ज़मीन बचाने की जद्दोजहद में, कलकत्ता में रिक्शा चलाने के लिए मजबूर किया जाता है. फ़िल्म के निर्देशक बिमल रॉय ने भारतीय सिनेमा में अपनी कई दर्द भरी और बेहतरीन फ़िल्मों के लिए, बड़ी संख्या में फ़िल्म अवॉर्ड जीते हैं. इन फ़िल्मों ने हिन्दी सिनेमा को समाज के लिए प्रासंगिक बनाने में मदद की.
Damodar Kamat with actor Meena Kumari, on the sets of the Hindi film PakeezahMuseum of Art & Photography
4. मीना कुमारी, अभिनेत्री
उर्दू फ़िल्म "पाकीज़ा" (१९७२ ) के सेट पर अभिनेत्री मीना कुमारी के साथ फ़ोटोग्राफ़र दामोदर कामत, म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट ऐंड फ़ोटोग्राफ़ी
फ़ोटो में रंगीन फ़िल्म "पाकीज़ा" (आखिरकार साल १९७२ में रिलीज़ हुई) के एक दृश्य की तैयारी करते हुए दिखाई गई अभिनेत्री, बेहद उम्दा कलाकार मीना कुमारी हैं. इस फ़िल्म के निर्देशक, उनके पति और लाजवाब फ़िल्म निर्माता कमाल अमरोही हैं. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की और अपने समय के सभी मुख्य कलाकारों के साथ काम किया. उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया और उन्हें बेहतरीन प्रदर्शन, मधुर आवाज़, और फ़िल्मों में निभाई गई दुखद भूमिकाओं के लिए याद किया जाता है.
Peter Chappell की Actor Dev Anand in his office in Mumbai (1988)
5. देव आनंद, अभिनेता
फ़ोटो में, १९८८ में अपने मुंबई ऑफ़िस में देव आनंद. फ़ोटो: पीटर चैपल, हाइफ़न फ़िल्म्स, लंदन के संग्रह से
दिलीप कुमार और राज कपूर के साथ-साथ देव आनंद को १९५० के दशक के सबसे अहम सितारों में से एक माना जाता था. इन अभिनेताओं को प्यार से "त्रिमूर्ति" कहा जाता था. रोमांस से लेकर क्राइम थ्रिलर तक, कई अलग-अलग तरह की फ़िल्मों में अभिनय करते हुए, देव आनंद ने ६० साल तक सिनेमा जगत में काम किया. इन्होंने पहले अभिनेता और बाद में निर्देशक के तौर पर काम किया. लंदन में ३ दिसंबर, २०११ को उनकी मौत हो गई.
Madan Mohan with Lata Mangeshkarमूल स्रोत: Personal collection of the Madan Mohan Family
6. लता मंगेशकर, प्लेबैक सिंगर
गीतकार मदन मोहन के साथ लता मंगेशकर, चित्रशाला के संग्रह से मिली फ़ोटो
१९४० के दशक के बाद से लता मंगेशकर की, भावनाओं को व्यक्त करने वाली बेजोड़ आवाज़ ने, ज़्यादा से ज़्यादा अभिनेत्रियों को काम करने का मौका दिया, क्योंकि अब उन्हें गाने के लिए अच्छी आवाज़ के बजाय, बस लिप सिंक करने की ज़रूरत होती थी. उनके गाने की कला ने संगीत निर्देशकों को जटिल और मुश्किल धुनें बनाने की आज़ादी भी दी. लता मंगेशकर का किसी से कोई मुकाबला ही नहीं है. वे आज भी बहुत पसंद की जाने वाली हस्ती हैं. साल १९४९ की फ़िल्म "महल" का गाना "आएगा आनेवाला" उनके हज़ारों यादगार गानों में से पहला गाना था.
Photographic still of actor Guru Dutt, from the Hindi film PyaasaMuseum of Art & Photography
7. गुरु दत्त, निर्देशक/निर्माता/अभिनेता
हिन्दी फ़िल्म "प्यासा" के एक दृश्य में अभिनेता गुरु दत्त की फ़ोटो, म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट ऐंड फ़ोटोग्राफ़ी के संग्रह से मिली फ़ोटो
निर्देशक/निर्माता/अभिनेता गुरु दत्त का नज़रिया, लीक से हटकर था. अपनी फ़िल्मों में उन्होंने शानदार सिनेमैटोग्राफ़ी, दमदार डायलॉग, बेहतरीन गाने, और प्यारे किरदारों को एक साथ दिखाया. यह फ़ोटो "प्यासा" (१९५७ ) फ़िल्म में कवि विजय के किरदार की है. इस फ़िल्म को टाइम मैगज़ीन की सदाबहार सबसे अच्छी १०० फ़िल्मों में शामिल किया गया. अपनी प्रतिभा के बावजूद, अपने जटिल स्वभाव और आंतरिक उथल-पुथल की वजह से, गुरु दत्त ने ९६४ में ३९ साल की उम्र में आत्महत्या कर ली. आज भी उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे पहले फ़िल्म निर्माताओं में से एक माना जाता है.
Sahir Ludhianvi, Lyricist
8. साहिर लुधियानवी, गीतकार
कवि/गीतकार साहिर लुधियानवी, हाइफ़न फ़िल्म्स, लंदन के संग्रह से मिली फ़ोटो
फ़िल्मों में हिन्दी/उर्दू के कुछ कवियों का योगदान बेहद अहम है. बेहतरीन रोमैंटिक कविता और सामाजिक टिप्पणी के साथ उनके शानदार गीतों को आज भी उन फ़िल्मों से ज़्यादा याद किया जाता है जिन फ़िल्मों में गानों को फ़िल्माया गया है. वामपंथी विचारधारा के कवि साहिर लुधियानवी के साथ-साथ कई बेहतरीन गीतकारों ने संगीत प्रेमियों की यादों में अमिट छाप छोड़ी है.
Still from the film "Mother India" (1957)
9. "मदर इंडिया", 1957
"मदर इंडिया" (१९५७ ) फ़िल्म का एक दृश्य, कॉपीराइट के मालिक/लेखक महबूब प्रोडक्शंस प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई, भारत के सौजन्य से मिली फ़ोटो
महबूब खान की शानदार फ़िल्म "मदर इंडिया" (१९५७ ), ऑस्कर में विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म (१९५८ ) के लिए नामांकित होने वाली पहली भारतीय फ़िल्म थी. फ़िल्म की मुख्य किरदार राधा (बेमिसाल अदाकारा नरगिस) एक गरीब किसान है, जो ढेरों मुश्किलों और दुखों के बावजूद अपने बेटों बिरजू और रामू (सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार) को पालने के लिए संघर्ष करती है. उसके मज़बूत पारंपरिक मूल्यों और हौसले ने, राधा के किरदार को लाखों लोगों के दिलों में एक खास जगह दिलाई.
Still from the film "Mughal-e-Azam" (1960)
10. "मुग़ल-ए-आज़म", 1960
के॰ आसिफ़ की फ़िल्म "मुगल-ए-आज़म" (1960) के मशहूर गाने शीश महल में खूबसूरत अदाकारा, मधुबाला. दीपेश सालगिया और Shapoorji Pallonji & Co. Ltd के सौजन्य से मिली फ़ोटो
के॰ आसिफ़ की यादगार फ़िल्म "मुग़ल-ए-आज़म" (१९६० ) की कहानी को मुगल बादशाह अकबर के दरबार के इर्द-गिर्द बुना गया है. इस फ़िल्म में, पिता और पुत्र के बीच के संघर्ष और शहज़ादे सलीम (दिलीप कुमार) और एक कनीज़, अनारकली (मधुबाला, अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में) की दर्द भरी प्रेम कहानी को दिखाया गया है. भव्य सेट, युद्ध के शानदार दृश्यों, लाजवाब संगीत और कोरियोग्राफ़ी, और दमदार संवाद ने के॰ आसिफ़ को एक दूरदर्शी फ़िल्म निर्माता के रूप में पहचान दिलाई
Still from the film "Mughal-e-Azam" (1960)
भारत में जन्मी और लंदन में रहने वाली नसरीन मुन्नी कबीर फ़िल्म निर्माता/लेखक हैं. उन्होंने भारतीय सिनेमा पर, दर्जनों डॉक्यूमेंट्री बनाई हैं और सोलह किताबें लिखी हैं. कबीर ने ब्रिटिश फ़िल्म इंस्टिट्यूट के बोर्ड में गर्वनर के तौर पर छह सालों तक अपनी सेवाएं दी हैं. इसके अलावा, तीस सालों से भी ज़्यादा समय तक यूनाइटेड किंगडम के Channel 4 टीवी पर इंडियन फ़िल्म के सालाना सीज़न का निर्माण किया.
लेखक: नसरीन मुन्नी कबीर
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