यह अनोखी ४० टन ०-३-० लोकोमोटिव बर्लिन के ओरेस्टीन एंड कोप्पल द्वारा १९०७ में निर्मित किया गया । कुल ०४ इंजन को भारत में आयात किया गया था । संतुलन वाले पहियो का व्यास ५० सेंटीमीटर हैऔर ०२ डबल फ्लेज पहिये २.१५ सेंटीमीटर के है। लोकोमोटिव का व्हीलबेस ११९ सेंटीमीटर का है । मुख्य भर मोनोरेल मे लगे एकल पहिये द्वारा वहन किया जाता है, जबकि शेष संतुलन के लिए लगे पहियो द्वारा वहन किया जाता हैजो सड़क पर चलते है । सामान्य रेल प्रणाली मे पटरियों को एक समान दूरी और सटीक स्तर पर होना जुरूरी होता है, अन्यथा रेलगाड़ी पटरियों से उतर जाएगी ।लेकिन "इविंग प्रणाली" के द्वारा इस समस्या का समाधान का लिया गया क्योंकि संतुलन के लिए लगे पहिये को मोनोरेल का संतुलन बनाये रखने के लिए पटरी कि आवश्यकता नहीं होती थी ।इसके अलावा एक पटरी का उपयोग किया जाता था । "इविंग प्रणाली" का उपयोग करने का अन्य फयाद यह था कि संतुलन के लिए लगे पहिये मौजूदा सड़को पर चल सकते थे ।
पीएसएमटी लोको और उसके कोच, १९६२ मे पटियाला के पी.डब्ल्यू . डी के स्क्रैप यार्ड मे लोको और उसके कोच अर्ध दफ़न स्थिति मे मिले थे और बाद मे इन्हें अमृतसर के उत्तर रेलवे कार्यशाला द्वारा १९७६ मे बहाल किया गया और इसको दुबारा से चलने योग्य बनाया गया ।
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