यह डबल डेकर भेड़ ले जाने वाली वैन १९२९ मे पूर्व रेलवे के लिलुआ कार्यशाला द्वारा बनायीं गयी थी | कब से इस प्रकार की वैन सेवा मे लाई गयी इसकी सटीक जानकारी नहीं है | हालांकि जो सूचना है उसके अनुसार १९०६ मे बिहार के दानापुर जिले से भेड़ और बकरियों को लेन के लिए ईस्ट इंडिया रेलवे की सेवाओं मे ६ भेड़ वैन लगाए गए थे | १९०८ मे इन वैन पर वैक्यूम ब्रेक का इस्तेमाल होने लगे | पहले वालो मे केवल पाइपिंग कनेक्शन होते थे | भेड़ों की सौम्यता के कारण, इन्हें डबल डेकर वैन मे किफायती तरिके से ले जा सकते थे | १८९० के शुरुआत मे गॉंवो से कलकत्ता के महानगरो तक भेड़ को ले जाने के लिए बंगाल - नागपुर रेलवे मे भेड़ वैन लगाए गए थे |
इस ०४ पहिये और लकड़ी के ढांचे वाली वैन के दो स्तर को चार भागों मे विभाजित किया है, जिसमें कुल १७६ भेड़ ले जा सकते है | प्रत्येक भाग के लिए अलग से लोहें की सलाखें और धूप से बचाव के लिए सायबान दिए गए है | वैन की छत पर लगे टैंको से पानी की आपूर्ति की जाती है और कर्मचारियों के लिए डिब्बे के केंद्र मे अगल से जगह दी गयी है |