यह डबल डेकर, भेड़ ले जाने वाली वैन १८२९ मे पूर्वी रेलवे के लिलुआ कार्यशाला द्वारा बनायीं गयी थी | सबसे पहले बिहार के दानापुर जिले से भेड़ व बकरियों को लाने के लिए ईस्ट इंडिया रेलवे की सेवा मे लगाए गए थे |
इस लकड़ी के ढांचे वाली डबल डेकर वैगन मे वह सारी समस्याएं थी जो कोई कल्पना केर सकता था | छत पूरी तरह से नीचे गिर गयी थी, फर्श धूल से भरी हुई थी, धूल - मिट्टी की मोटी परत पानी वाले नाद पर देखी जा सकती थी | टूटे दरवाजे वैगन के अंदर रखे हुए थे |फ्रेम को छोड़कर पूरी संरचना दयनीय स्थिति मे थी | वैगन मे लगी लकड़ी मे दीमक लग गए थेइसके अलावा तापमान और आर्द्रता मे उतार - चढ़ाव की वजह से लकड़ी मे दरारे देखी जा सकती थी |अन्य उपकरण जैसे - हैंडल, नट - बोल्ट, इत्यादि ढीले और जंग लगे हुए थे |
यहाँ आप धूल और गंदगी का संचय देख सकते है और पेंट परत को ओरी तरह से निकला हुआ देख सकते है |