भारत का पहला उद्यान मकबरा

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हुमायूं का मकबरा भारतीय उपमहाद्वीप का ऐसा पहला मकबरा है जिसे बगीचे के बीच बनाया गया. इसके चारों तरफ़ करीने से सजे और साफ़-सुथरे बगीचे इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. यह वास्तुकला की मुगल शैली में बने विशाल और भव्य मकबरों में से पहला मकबरा है. यह प्यार और कामना की अमर कहानी दोहराता कहता है.

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कब्र के पीछे बनी खिड़कियां

इस मकबरे को सन् 1572 में मुगल बादशाह हुमायूं की पहली रानी, हाजी बेगम ने बनवाया था. यहां बादशाह और उनकी बेगम दोनों की कब्रें बनी हैं. यह उनके प्यार की निशानी है.

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हुमायूं का मकबरे सन् 1565 में बनाना शुरू हुआ और यह सन् 1572 में बनकर तैयार हुआ. इसका डिज़ाइन, फ़ारसी वास्तुकार मिराक मिर्ज़ा घियास ने बनाया था. इस मकबरे को सात मीटर ऊंचे प्लैटफ़ॉर्म पर बनाया गया है. इसकी ऊंचाई 47 मीटर और चौड़ाई 91 मीटर है.

यह भव्य इमारत दिल्ली की उन तीन इमारतों में शामिल है जिन्हें विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है.

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हरे-भरे बगीचे में घुसते ही, एक सुंदर फ़व्वारा नज़र आता है. यह नज़ारा तस्वीर खींचने के लिहाज़ से बेहद खूबसूरत है.

इस बगीचे को चार मुख्य हिस्सों में बांटा गया है जिन्हें पैदल चलने के रास्तों या बहते हुए पानी की नालियों की मदद से एक-दूसरे से अलग किया गया है. इसे पवित्र कुरान में बताए गए जन्नत के बगीचे की तरह बनाया गया है. साथ ही, इन चार हिस्सों को पानी की नालियों की मदद से, 36 हिस्सों में बांटा गया है.

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दरवाज़े पर दर्शकों के लिए बनी तस्वीरों की गैलरी

सैलानियों को इस इमारत तक पहुंचने से पहले कई बड़े दरवाज़ों से होकर गुज़रना पड़ता है. आखिरी दरवाज़े से ठीक पहले, भारतीय पुरातत्व विभाग ने दर्शकों के लिए एक गैलरी बनाई है जहां इस इमारत की भव्यता को दिखाने वाली पुरानी तस्वीरें लगाई गई हैं.

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इमारत की मुख्य संरचना, लाल बलुए पत्थर की बनी है, जबकि मकबरे को सफ़ेद और काले संगमरमर से बनाया गया है.

यहां बने एक भव्य दरवाज़े से होकर मुख्य हॉल तक पहुंचा जा सकता है. यहीं हुमायूं का मकबरा बना है. इस हॉल में सुंदर नक्काशी वाली खिड़कियां और खूबसूरत नक्काशी से छत भी सजाई गई है.

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बू हलीमा के मकबरे का नज़ारा

इस बड़े प्लैटफ़ॉर्म में रानी हाजी बेगम, हमीदा बेगम, और दारा शिकोह के मकबरे सहित कई मकबरे बने हैं. भारत में किसी भी और इमारत में इतने मकबरे नहीं हैं जितने हुमायूं के मकबरे के परिसर में हैं.

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नाई के मकबरे का नज़ारा

हुमायूं के मकबरे से जुड़ी दो दिलचस्प बातें और भी हैं. पहली यह कि यहां बादशाह के पसंदीदा नाई का मकबरा है और दूसरी यह कि 1857 में आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर ने यहां शरण ली थी और यहीं से ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें कैद करके देश से बाहर भेज दिया था.

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इस परिसर की एक और ख़ास बात यह है कि यहां ईसा खान का मकबरा भी है. ईसा खान लोधी काल के दौरान एक शक्तिशाली नवाब था. यह मकबरा, हुमायूं के मकबरे से 20 साल पहले बनवाया गया था. यह आठ कोनों वाली संरचना है और विश्व धरोहर की सूची में शामिल इस परिसर की आरम्भ में ही बनी है.

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ईसा खान की मस्जिद का नज़ारा

हुमायूं के मकबरे के पास ही ईसा खान का मकबरा भी बना है. 16वीं सदी में बनी यह भव्य इमारत लोधी काल की वास्तुकला के हिसाब से बनी है. इसमें सिर्फ़ एक मुख्य गुंबद बना है.

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ईसा खान के मकबरे के चारों तरफ़ एक बहुत बड़ा बरामदा है. इसके आठों कोनों पर तिकोने दरवाज़े बने हैं. यहां की दीवारों पर भित्ति चित्र बने हुए हैं. साथ ही इसकी छत पर बने गोल भित्ति चित्र बेहद आकर्षक हैं.

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हुमायूं के मकबरे के दरवाज़े के बाहर का नज़ारा

यह ऐतिहासिक इमारत दिल्ली की मशहूर हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह के पास है. यह दरगाह 14वीं सदी के महान सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की कब्र पर बनी है.

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हुमायूं के मकबरे के दक्षिण-पश्चिमी कोने में स्थित अफ़सरवाला मस्जिद और मकबरे का निर्माण मुगल बादशाह अकबर के दरबार के अधिकारियों की याद में किया गया था. यहां बहुत सी कब्रें हैं जिनमें इन अधिकारियों के इंतिक़ाल की तारीखें उकेरी गई हैं.

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हुमायूं के मकबरे की इमारत लाल बलुए पत्थर की बनी है जबकि मकबरा सफ़ेद और काले संगमरमर का बना है.

यहां एक शानदार दरवाज़ा है जहां से अंदर जाकर आप केन्द्रीय सभा-गृह में पहुंचते हैं. यहीं पर यह मकबरा बना है. इस सभा-गृह में सुंदर नक्काशी वाली खिड़कियां और छत पर भी खूबसूरती नक्काशी देखी जा सकती है.

यहां एक बड़े चबूतरे पर रानी हाजी बेगम, हमीदा बेगम, और दारा शिकोह के मकबरे सहित कई अन्य मकबरे बने हैं.

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हुमायूं के मकबरे के मुख्य गुंबद के चारों तरफ़ बने साफ़-सुथरे बगीचे में मुगल सल्तनत के समय के खास लोगों को दफ़नाया गया है. इसमें बादशाह हुमायूं के सबसे खास सहयोगियों की कब्रें भी बनी हैं.

आभार: कहानी

वर्चुअल रियलिटी दौरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सौजन्य से

क्रेडिट: सभी मीडिया
कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि पेश की गई कहानी किसी स्वतंत्र तीसरे पक्ष ने बनाई हो और वह नीचे दिए गए उन संस्थानों की सोच से मेल न खाती हो, जिन्होंने यह सामग्री आप तक पहुंचाई है.
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