मोने की बनाई रुआं पेंटिंग सीरीज़

द नैशनल गैलरी, लंदन

Claude Monet की Rouen Cathedral, West Façade, Sunlight (1894)National Gallery of Art, Washington DC

रुआं में मोने

क्लॉड मोने (1840–1926) ने नोर्मंडी के मशहूर रुआं कथीड्रल की तीस से ज़्यादा पेंटिंग बनाईं. आज की तारीख में ये पेंटिंग टोक्यो से लेकर लॉस एंजेलिस तक, दुनियाभर के कई निजी और सार्वजानिक संग्रहों में रखी गई हैं. इन सभी पेंटिंग में, अलग-अलग मौसमों और दिन के अलग-अलग समय में कथीड्रल की बाहरी खूबसूरती को कैनवस पर उतारा गया है. इनमें आप इस मध्यकालीन इमारत के पत्थरों पर पड़ने वाली रोशनी को समय के हिसाब से बदलते हुए देख सकते हैं.

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कथीड्रल की पेंटिंग बनाने के लिए मोने दो बार रुआं गए, एक बार 1892 में वसंत की शुरुआत में और फिर 1893 के वसंत में. उन्होंने टूर डी'एलबान की तरफ़ वाले कथीड्रल के हिस्से को दिखाने के लिए उसकी दो पेंटिंग किसी बंद कमरे से न बनाकर एक खुली जगह से बनाईं. पेंटिंग करने के इस तरीके को 'en plein air' कहा जाता ह. इसका जिसका मतलब है, सड़क जैसी किसी खुली जगह से पेंटिंग बनाना..

Claude Monet की The Portal of Rouen Cathedral in Morning Light (1894)The J. Paul Getty Museum

रुआं सीरीज़

इस सीरीज़ की ज़्यादातर पेंटिंग उन्होंने कथीड्रल के पश्चिमी हिस्से के पास स्थित कमरों से बनाईं. अलग-अलग तरह के रंगों और रोशनी को देखने के लिए आप उस सीरीज़ की तीन पेंटिंग यहां देख सकते हैं.

उन्होंने ऐसी जगहों से पेंटिंग बनाईं जहां से उन्हें कथीड्रल का पूरा पश्चिमी हिस्सा, अंदर जाने का रास्ता, टूर डी बर और टूर डी'एलबान पूरा दिखाई देता था. कुछ समय के लिए, उन्होंने महिलाओं के कपड़ों की एक दुकान से भी पेंटिंग बनाईं. वह उस दुकान के दूसरे फ़्लोर से पेंटिंग बनाते थे. इस दुकान में, उनके बैठने की जगह और ग्राहकों के कपड़े बदलने वाले कमरे के बीच एक स्क्रीन हुआ करती थी.

Claude Monet की Rouen Cathedral, West Façade, Sunlight (1894)National Gallery of Art, Washington DC

वह सारा दिन इन जगहों से पेंटिंग बनाते थे. वह दिन के ज़्यादातर समय तंग जगहों पर बैठकर अलग-अलग कैनवस पर पेंट किया करते थे. उन्होंने कथीड्रल की सभी पेंटिंग रुआं में पूरी नहीं की. रुआं छोड़ने के बाद, 1894 में उन्होंने जिवर्नी स्थित अपने स्टूडियो में उनपर काम करना जारी रखा. रुआं की तंग जगहों के बाद, आखिरकार इस स्टूडियो में उन्हें काम करने के लिए एक बड़ी जगह मिली.

Claude Monet की Rouen Cathedral, West Façade (1894)National Gallery of Art, Washington DC

मोने को कथीड्रल की पेंटिंग बनाने का काम काफ़ी मुश्किल लग रहा था, लेकिन उन्होंने खुद को यह चुनौती दी थी कि वह यह काम पूरा करेंगे. उन्होंने अपनी पत्नी को एक खत में लिखा था, ‘मैं पागलों की तरह इस पर काम कर रहा हूं, कथीड्रल के अलावा मुझे और किसी चीज़ का खयाल नहीं आता’.

Top Euro (Fra) Rouen CathedralLIFE Photo Collection

मोने चाहते थे कि कथीड्रल की ये पेंटिंग एक साथ देखी जाएं. इसलिए 1895 में उन्होंने इनमें से 20 पेंटिंग चुनकर अपने डीलर ड्यूरा-रुएल की पेरिस में स्थित गैलरी में उनकी प्रदर्शनी लगाई. ड्यूरा-रुएल को चिंता थी कि मोने ने अपनी पेंटिंग के लिए 15,000 फ़्रैंक की जो कीमत रखी थी वह काफ़ी ज़्यादा थी. हालांकि इस ऊंची कीमत में भी कुछ पेंटिंग खरीद ली गईं.

इस प्रदर्शनी को आलोचकों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली, जिसकी एक वजह यह भी थी कि पेंटिंग में एक धार्मिक इमारत दिखाई गई थी. कुछ आलोचकों को पेंटिंग में कथीड्रल के सामने वाले हिस्से पर पड़ने वाली रोशनी असली नहीं लग रही थी. उनके हिसाब से, यह रोशनी ऐसी लग रही थी जैसे वह उस कथीड्रल को सपने में देख रहे हों. ऐसा शायद 20 पेंटिंग एक साथ देखने की वजह से हो रहा था.

Claude Monet की Wheatstacks, Snow Effect, Morning (1891)The J. Paul Getty Museum

मोने की पेंटिंग सीरीज़

अपने करियर में मोने ने कई बार, एक ही चीज़ को अपने कैनवस पर बार-बार उतारकर उन पेंटिंग की एक सीरीज़ बनाई. 1890 की शुरुआत से उन्होंने ज़्यादातर पेंटिंग, सीरीज़ में बनानी शुरू कीं. इन सीरीज़ को बनाने के लिए वह शहरों और गांवों, दोनों जगह जाकर पेंटिंग करते थे. इन सीरीज़ में शामिल हैं उनके जिवर्नी स्थित घर के पास वाले खेत में सूखी घास के ढेर; एप्ट नदी के किनारे लाइन से लगे चिनार के पेड़; लंदन में स्थित ब्रिटिश संसद; वेनिस के चर्च और महल; उनके बाग में स्थित जापानी पुल; और पानी में खिलने वाले कुमुद के फूलों की बहुत सारी पेंटिंग. इनमें से हर एक पेंटिंग, आपको मोने और उनके चुने गए विषय के बीच के रिश्ते को समझने के लिए मजबूर करती है. इन पेंटिंग में आप इन विषयों पर अलग-अलग मौसम, रोशनी, नमी, चमक, परछाई और धुंध का असर देख सकते हैं.

Stacks of Wheat (End of Summer), Claude Monet (French, 1840-1926), 1890/91, इनके संग्रह से लिया गया है: The Art Institute of Chicago
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Stacks of Wheat (End of Day, Autumn), Claude Monet (French, 1840–1926), 1890/91, इनके संग्रह से लिया गया है: The Art Institute of Chicago
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Claude Monet की The Cliff of Aval, Etrétat (1885)The Israel Museum, Jerusalem

‘चाहे पत्थर ही हो, बदलता ज़रूर है’.

कथीड्रल का मुख्य भाग एक ही रंग के पत्थर को काट कर बनाया गया है लेकिन उसकी पेंटिंग की सीरीज़ में हमें हल्के बैंगनी से लेकर हरे और गुलाबी से लेकर नारंगी, कई रंग दिखाई देते हैं. मोने रंगों के साथ खेलते थे ताकि वह अपनी पेंटिंग में कथीड्रल के आस-पास के माहौल और रोशनी को अपने कैनवस पर उतार सकें. इसी तरह, उन्होंने एट्रेटा में स्थित चूनापत्थर की चट्टानों की पेंटिंग बनाने के लिए भी कई रंगों का इस्तेमाल किया था. मोने ने कथीड्रल की पेंटिंग बनाने के बारे में कहा था कि: ‘चाहे पत्थर ही हो, बदलता ज़रूर है’.

1885 में एट्रेटा में क्लॉड मोने की बनाई गई ‘द क्लिफ़ ऑफ़ ऐवल’ पेंटिंग की बारीकियां

Claude Monet की Rouen Cathedral, West Façade (1894)National Gallery of Art, Washington DC

1894 में क्लॉड मोने की बनाई गई ‘रुआं कथीड्रल’ वेस्ट फ़साड पेंटिंग की बारीकियां

Claude Monet की The Portal of Rouen Cathedral in Morning Light (1894)The J. Paul Getty Museum

रुआं कथीड्रल पेंटिंग सीरीज़, मोने के कला-जीवन के ऐसे आयाम दिखाती हैं जो उनके लिए अलग और नए थे. अब वह सिर्फ़ रोशनी और मौसम के असर को अपने कैनवस पर नहीं उतारते थे. रुआं की पेंटिंग बनाने के बारे में उन्होंने लिखा था, ‘मैं जो देखता और महसूस करता हूं, उसे दुनिया के सामने रखने के लिए मैं हर दिन पहले से ज़्यादा बेचैन हो रहा हूं’. इस सीरीज़ में कथीड्रल के सामने के हिस्से की पेंटिंग बनाते समय उन्होंने रंगों और रोशनी के अलावा मन पर असर डालने वाली चीज़ों की तरफ़ भी ध्यान दिया. पेंटिंग करने के इस तरीके की झलक इमारतों की उनकी अगली सीरीज़ में भी दिखाई देती है. ऐसा खास तौर पर उन पेंटिंग में देखा जा सकता है जिनमें उन्होंने वेनिस के अलग-अलग नज़ारों को अपने कैनवस पर कैद किया है.

आभार: कहानी

क्रेडिट: सभी मीडिया
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