झांसी की रानी: पहली टेक्नीकलर फ़िल्म

साल 1953 में आई फ़िल्म झांसी की रानी, सोहराब मोदी के करियर की एक बेहतरीन फ़िल्म थी. इस प्रोजेक्ट में उन्होंने जी-जीन लगा दी थी.

Unknown का Photographic lobby card for the film 'Jhansi Ki Rani'Museum of Art & Photography

रंगीन फ़िल्में बनाने का दौर 

यह भारत की पहली टेक्नीकलर फ़िल्म थी. 

कहने को तो भारत में पहली रंगीन फ़ीचर फ़िल्म का निर्माण साल 1937 में ही हो गया था. इस फ़िल्म का नाम था किसान कन्या. हालांकि, इस फ़िल्म में रंगों को निखारने की उस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं किया गया था जो सोहराब मोदी अपनी शानदार फ़िल्म के साथ लेकर आने वाले थे. 

साथ ही, टेक्नीकलर फ़िल्मों में बिलकुल वैसे रंग दिखने की बात कही जा रही थी जैसे रंग आंखों को असल दुनिया में दिखते हैं. ऐसा करने के लिए, इसे रंगों के असर से जुड़े अनुसंधान और डेवलपमेंट के कई जटिल चरणों से होकर गुज़रना पड़ा. इनमें रंगों को जोड़ने और घटाने जैसी प्रोसेस शामिल थीं.

साल 1939 तक आते-आते, फ़िल्म बनाने के तरीके में पूरी तरह बदलाव आ चुका था. अब यह तरीका, फ़िल्मों में बस रंग भरने तक सीमित नहीं था. 

बेकी शार्प (1935), गॉन विद द विंड (1939), और द विज़र्ड ऑफ़ ओज़ (1939) जैसी फ़िल्मों में इस्तेमाल की गई टेक्नीकलर टेक्नोलॉजी में, हाइलाइट को बूस्ट करने और इमेज के कंट्रास्ट वाले हिस्सों पर बेहतरीन डीटेल दिखाने पर ध्यान दिया गया.

जहां एक तरफ़, फ़िल्म में रंगों की बेहद अहमियत थी, वहीं दूसरी तरफ़ यह भी ज़रूरी था कि फ़िल्म बनाने वाले लोग, दर्शकों से भावनात्मक तौर पर जुड़ सकें. साथ ही, इस बात का ध्यान भी रखना था कि कहीं इतने रंग न भर जाएं कि आखिर में तैयार हुई फ़िल्म भद्दी लगने लगे. 

ऐतिहासिक विषयों पर पुकार (1939) और एक दिन का सुल्तान (1945) जैसी फ़िल्में बनाने के लिए लोकप्रिय सोहराब मोदी, अब एक भव्य और शानदार फ़िल्म बनाने जा रहे थे. एक ऐसी फ़िल्म जो बहुत बड़े पैमाने पर बने और आम फ़िल्मों से बिलकुल हटकर हो.

Unknown का Photographic lobby card for the film 'Jhansi Ki Rani'Museum of Art & Photography

एक महान गाथा 

साल 1857 में ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ रानी लक्ष्मीबाई के विद्रोह की गाथा को सबसे महान गाथाओं में से एक माना जाता है. 


उनकी नेतृत्व करने की क्षमता, घुड़सवारी, और तलवार चलाने का कौशल, उन्हें करीब-करीब अजेय बनाता था

उनका विवाह झांसी के महाराज गंगाधर राव से हुआ. लक्ष्मीबाई या रानी मणिकर्णिका को राजमहल में रहते हुए कभी भी योद्धा नहीं समझा गया. हालांकि, बाद में वे एक योद्धा के तौर पर उभरीं.

पति की मौत के बाद, अपनी रियासत को अंग्रेज़ों की गुलामी और हड़प नीति से बचाने के लिए, उन्होंने हथियार उठाए. 

उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया था, जिसे अंग्रेज़ों ने रानी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया था. उन्होंने इस फ़ैसले का विद्रोह करते हुए कहा: "मैं मेरी झांसी नहीं दूंगी". वे अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेज़ी सेना के ख़िलाफ़ लड़ती रहीं और ग्वालियर के फूल बाग की रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गईं.

Unknown का Photographic lobby card for the film 'Jhansi Ki Rani'Museum of Art & Photography

रानी लक्ष्मीबाई की कुर्बानी को कोई भारतीय कभी नहीं भुला सकता. अंग्रेज़ी साम्राज्य के ख़िलाफ़ भारत की आज़ादी के लिए उनकी तत्परता और निडरता का हर कोई कायल है. विडंबना यह है कि इस शहादत के कई सालों बाद, अंग्रेज़ों का एक समूह और कुछ विदेशी लोग ही, भारतीय सिनेमा के ज़रिए उनकी कहानी सबके सामने लेकर आए.

सोहराब मोदी ने यह बात मानी थी कि इतिहास में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी. हालांकि, झांसी की रानी पर लिखे वृंदावन लाल वर्मा के उपन्यास को पढ़ने के बाद, जैसे उनके हाथ कोई बेशकीमती खज़ाना लग गया हो. 

उपन्यास पर पूरी फ़िल्म बनाई जा सकती थी. साथ ही, इसमें उर्दू और हिन्दी भाषा का बढ़-चढ़कर इस्तेमाल किया गया था, जिससे सोहराब को बेइंतिहा प्यार था.

उन्होंने बेहद लोकप्रिय वीरांगना पर बन रही इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाने के लिए अपनी पत्नी मेहताब को चुना. हालांकि, मेहताब के लिए इतने बड़े किरदार को निभाना बिलकुल आसान काम नहीं था. 

मेहताब को यह किरदार निभाने के लिए तलवारबाज़ी, घुड़सवारी, और दूसरे कई करतब सीखने पड़े, ताकि वे इस वीरांगना का किरदार निभाने लायक बन सकें. इसके अलावा, उन्हें एक्सरसाइज़ करके खुद को फ़िट बनाना पड़ा, ताकि वे झांसी की रानी जैसी दिखें. दिलचस्प बात यह थी कि 35 साल की मेहताब, अपने से काफ़ी कम उम्र की महिला का किरदार निभाने जा रही थीं. 

अच्छी बात यह थी कि सोहराब अच्छे से उर्दू बोल और समझ पाते थे. इस वजह से, वे राजगुरु के किरदार के साथ इंसाफ़ करते हुए, उसे आसानी से निभा पाए. छोटी मनु को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बनाने में, राजगुरु ने बहुत 

अपने पिता की मौत के बाद, मनु ने कुछ बच्चों के साथ मिलकर अपने पिता के हत्यारे के ख़िलाफ़ बगावत कर दी. इससे राजगुरु इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने यह तय कर लिया कि वे उस तेज़तर्रार लड़की को अपने संरक्षण में प्रशिक्षित करेंगे और एक दिन उसे झांसी की रानी बनाएंगे.

भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ़, केएम करियप्पा ने 18 जनवरी, 1951 को फ़िल्म की मुहूर्त पूजा की. 

सोहराब के पास आलीशान फ़िल्म सेट, महंगे कपड़े, और शानदार स्टाइलिंग जैसा सब कुछ था. हालांकि, उनके पास अब भी एक चीज़ की कमी थी. इसलिए, करीब 5,000 फ़ीट की रील या ब्लैक एंड व्हाइट रील पर करीब एक घंटे की शूटिंग पूरी करने के बाद, उन्होंने फ़ैसला किया की अब वे इस फ़िल्म में असल 'जिंदगी के रंग' भर देंगे!

Unknown का Photographic lobby card for the film 'Jhansi Ki Rani'Museum of Art & Photography

एक साहसिक कदम 

उस दौर में टेक्नीकलर प्रोसेस बहुत ही जटिल थी और उसकी प्रोडक्शन लागत भी ज़्यादा थी. हालांकि, इन सब चुनौतियों के बावजूद, सोहराब अपने फ़ैसले पर अडिग रहे. 

उन्होंने एक ऐसी फ़िल्म बनाने की कल्पना की, जिसमें "रंग-बिरंगे कपड़ों का हर शेड, उत्सवों की चकाचौंध, और उस दौर की खूबसूरती" दिखाई जाए. इसके बाद, उन्होंने इस फ़िल्म में टेक्नीकलर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया.

अपने इस सपने को पूरा करने के लिए, सोहराब ने विदेशों से एक्सपर्ट की एक टीम बुलाई और उसे इस प्रोजेक्ट में शामिल किया. फ़िल्म को मशहूर सिनेमैटोग्राफ़र अर्नेस्ट हालर ने शूट किया, जिन्हें लोकप्रिय फ़िल्म गॉन विद द विंड (1939) के लिए ऑस्कर पुरस्कार मिला था. 

उन्होंने युद्ध वाले सीन और गानों को फ़िल्माने के लिए हॉलीवुड के कलर कंसल्टेंट, जॉर्ज जेंकिन्स की मदद भी ली.

उस दौर में टेक्नीकलर प्रोसेस बहुत ही जटिल थी और उसकी प्रोडक्शन लागत भी ज़्यादा थी. 

इमेज के कलर को रिप्रोड्यूस करने के लिए, थ्री-स्ट्रिप टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता था. आसान शब्दों में कहें, तो तीन अलग-अलग स्ट्रिप को कैमरे में इस्तेमाल किया जाता था और बाद में इन्हें एक-साथ प्रोसेस करके एक बेहतरीन इमेज बनाई जाती थी. 

इस प्रोसेस से यह पक्का किया जा सकता था कि फ़िल्म में हाइलाइट और कंट्रास्ट, हर फ़्रेम के लिए तय किए गए लुक और फ़ील के हिसाब से ही होगा.

Unknown का Photographic lobby card for the film 'Jhansi Ki Rani'Museum of Art & Photography

इस भव्य फ़िल्म की शूटिंग के लिए, सितंबर 1951 में इंग्लैंड से बहुत सारे उपकरण मुंबई लाए गए. 

इन उपकरणों में 275 किलोवॉट का जनरेटर, नए ज़माने की आर्क लाइटें, ट्रांसफ़ॉर्मर, साउंड गियर, और बड़े केबल और ट्रक शामिल थे.

शूटिंग पूरी करने के बाद भी, सोहराब को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

भारत में मौजूद प्रयोगशालाओं के पास टेक्नीकलर को प्रोसेस करने के लिए पर्याप्त टेक्नोलॉजी नहीं थी. इसलिए, फ़िल्म को पूरा करने के लिए सोहराब को हफ्तों तक लंदन में रहना पड़ा. सोहराब मोदी के बेटे मेहेली मोदी ने बताया कि इतना ही नहीं, "आवाज़ को फिर से रिकॉर्ड किया गया और बारह चैनलों में मिक्स किया गया था".

Unknown का Photographic lobby card for the film 'Jhansi Ki Rani'Museum of Art & Photography

कुछ कर गुज़रने की चाहत 

सोहराब ने एक क्लासिक फ़िल्म बनाई थी, जिसके लिए उन्हें आने वाली सदियों तक याद किया जाएगा.

फ़िल्म को अंग्रेज़ी में भी डब किया गया था और 1956 में द टाइगर एंड द फ़्लेम शीर्षक के साथ अमेरिका में रिलीज़ किया गया था. 

इसकी अवधि मूल फ़िल्म से कम थी. इसका मकसद विदेशी लोगों को भारत की विरासत से रूबरू कराना था. यह देखना दिलचस्प था कि सोहराब मोदी ने भारत की सबसे महान रानियों में से एक के भव्य मंचन को संक्षिप्त तौर पर दिखाया.

Unknown का Photographic lobby card for the film 'Jhansi Ki Rani'Museum of Art & Photography

यह साफ़ है कि सोहराब ने उस समय की सबसे महंगी फ़िल्म बनाई थी. फ़िल्म झांसी की रानी के निर्माण पर 60 लाख रुपये खर्च हुए थे. फिर भी, फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह पिट गई.

इस बात की आलोचना की गई थी कि वास्तविक चरित्र से दोगुनी उम्र का होने के बावजूद, मेहताब को इस भूमिका के लिए कैसे चुना गया.

Unknown का Photographic lobby card for the film 'Jhansi Ki Rani'Museum of Art & Photography

हालांकि, सोहराब ने एक क्लासिक फ़िल्म बनाई थी, जिसके लिए उन्हें आने वाली सदियों तक याद किया जाएगा. उन्होंने एक ऐसी फ़िल्म बनाई, जो न सिर्फ़ नई थी, बल्कि उनके दौर से काफ़ी आगे की भी थी. 

कहानी दिखाने के उनके तरीके में ड्रामा बिलकुल भी नहीं था, न तो सीन में और न ही ट्रीटमेंट में. उन्होंने रानी का चित्रण इस तरह से किया कि बिना मेलोड्रामा दिखाए ही लोगों को रानी से सहानुभूति हुई और वे उनका दुख समझ पाए.

ऐसे समय में जब फ़िल्मों में मैन्युअल इफ़ेक्ट की जगह कंप्यूटर-जनरेटड इमेज ने ले ली है, तब हमें अपनी जड़ों का हमेशा सम्मान करने के लिए, सोहराब मोदी जैसे गुमनाम नायकों के इतिहास को खंगालना चाहिए. 

उनके बेटे मेहेली मोदी अब लंदन में रहते हैं और पुरानी भारतीय फ़िल्में डिस्ट्रिब्यूट करते हैं. उन्हें इस बात का पछतावा है कि फ़िल्म के मूल कलर का नेगेटिव खो चुका है. इसलिए “इस फ़िल्म का कम अवधि वाला कोई टेक्नीकलर वर्शन मौजूद नहीं है.”

आभार: कहानी

क्रेडिट
1.फ़िल्म फ़ेस्टिवल के दूसरे दिन, फ़िल्म झांसी की रानी को दर्शकों ने काफ़ी पसंद किया
https://www.dailypioneer.com/2013/state-editions/movie-jhansi-ki-rani-evokes-huge-response-on-day-two-of-film-fest.html
2. झांसी का रानी https://en.wikipedia.org/wiki/Jhansi_Ki_Rani_(1953_film)
3. हिन्दी सिनेमा की असली झांसी की रानी, मेहताब से मिलिए
https://www.cinestaan.com/articles/2017/apr/10/5183
4. पहली टेक्नीकलर फ़िल्म झांसी की रानी के बारे में विक्रम फुकन का लेख- द हिंदू
https://www.thehindu.com/entertainment/movies/life-in-technicolor/article19325240.ece
5. एक वीरांगना महारानी: सोहराब मोदी की क्लासिक फ़िल्म 'झांसी की रानी' के पीछे की कहानी
https://scroll.in/reel/908620/the-warrior-queen-the-story-behind-sohrab-modis-classic-rani-of-jhansi
6. कैसे लंदन में बसा एक भारतीय फ़िल्म डिस्ट्रिब्यूटर, भूली-बिसरी क्लासिक फ़िल्मों को बचाने की कोशिश कर रहा है
https://scroll.in/reel/873687/how-an-indian-film-distributor-in-london-is-helping-rescue-forgotten-classics-from-obscurity
7. एक वीरांगना महारानी: सोहराब मोदी की क्लासिक फ़िल्म 'झांसी की रानी' के पीछे की कहानी
https://scroll.in/reel/908620/the-warrior-queen-the-story-behind-sohrab-modis-classic-rani-of-jhansi
8. “मणिकर्णिका” की रिलीज़ से पहले, आइए नज़र डालते हैं सोहराब मोदी की फ़िल्म “झांसी की रानी” पर https://www.indianwomenblog.org/ahead-of-manikarnikas-release-lets-look-back-at-sohrab-modis-jhansi-ki-rani/
9. टेक्नीकलर की वेबसाइट: https://www.technicolor.com/

क्रेडिट: सभी मीडिया
कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि पेश की गई कहानी किसी स्वतंत्र तीसरे पक्ष ने बनाई हो और वह नीचे दिए गए उन संस्थानों की सोच से मेल न खाती हो, जिन्होंने यह सामग्री आप तक पहुंचाई है.
ज़्यादा जानें
मिलती-जुलती थीम
हिंदी सिनेमा
Your ticket into the magical world of Indian cinema
थीम देखें

क्या Natural history में दिलचस्पी है?

अपनी दिलचस्पी के हिसाब से बनाए गए Culture Weekly के अपडेट पाएं

अब आप बिलकुल तैयार हैं!

आपका पहला Culture Weekly इस हफ़्ते आएगा.

मुख्यपृष्ठ
डिस्कवर
वीडियो गेम खेलें
आस-पास
पसंदीदा