सावित्रीबाई फुले

वह महिला, जिनकी सहायता से भारत में स्त्रियों के लिए पहले विद्यालय की स्थापना हुई

Zubaan की पेशकश

Zubaan, Malvika Asher

Malvika Asher की Savitribai Phule Receiving British Accolades (2016)Zubaan

सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों और समाज के बहिष्कृत हिस्सों के लोगों को शिक्षा प्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभाई. वह भारत की पहली महिला अध्यापिका बनीं (1848) और उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए एक विद्यालय खोला. इसके बाद उन्होंने बेसहारा स्त्रियों के लिए एक आश्रय स्थल की स्थापना (1864) की और सभी वर्गों की समानता के लिए संघर्ष करने वाले ज्योतिराव फुले के धर्मसुधारक संस्थान सत्यशोधक समाज (1873) का विकास करने में अहम भूमिका निभाई.उनके जीवन को भारत में स्त्रियों के अधिकारों का प्रकाश स्तंभ माना जाता है. उन्हें अक्सर भारतीय नारी आंदोलन की जननी के रूप में जाना जाता है.

Malvika Asher की Savitribai Phule: Her Birth and Her Desire to Educate All Girls (2016)Zubaan

सावित्रीबाई का जन्म भारत के महाराष्ट्र राज्य के छोटे से गांव नायगांव में हुआ. सावित्रीबाई बचपन से ही बहुत जिज्ञासु और महत्वाकांक्षी थीं. 1840 में नौ साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ और वह बलिका वधु बनीं. इसके बाद वह जल्द ही उनके साथ पुणे चली गईं.

Malvika Asher की Savitribai Phule Being Taught by Jyotirao Phule (2016)Zubaan

सावित्रीबाई के लिए उनकी सबसे बहुमूल्य चीज़ उन्हें एक ईसाई धर्मप्रचारक द्वारा दी गई पुस्तक थी. उनके सीखने की चाह से प्रभावित होकर ज्योतिराव फुले ने सावित्रीबाई को पढ़ना-लिखना सिखाया. सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में शिक्षक बनने का प्रशिक्षण लिया. वह 1847 में अपनी चौथी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद एक योग्य शिक्षक बनीं.

Malvika Asher की Opening of the First School for Girls by Savitribai Phule and Jyotirao Phule (2016)Zubaan

देश में स्त्रियों की स्थिति को बदलने के लिए प्रतिबद्ध सावित्रीबाई ने ज्योतिराव. जो स्वयं समाज सुधारक थे, उनके साथ मिलकर 1848 में लड़कियों के लिए एक विद्यालय खोला. वह भारत की पहली महिला अध्यापिका बनीं. इससे समाज में रोष उत्पन्न होने लगा.

1853 में सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने एक शिक्षा समाज की स्थापना की, जिसने आस-पास के गांवों में सभी वर्गों की लड़कियों व महिलाओं के लिए और अधिक विद्यालय खोले.

उनकी यात्रा आसान नहीं थी. विद्यालय जाते समय उन्हें गालियां दी जाती थीं और उन पर गोबर फेंका जाता था. लेकिन सावित्रीबाई बस अपने साथ हर रोज़ जो अतिरिक्त साड़ी लेकर आती थीं, उसे पहनकर अपने मार्ग पर आगे बढ़ जाती थीं.

Malvika Asher की Setting Up the Shelter and Adoption of Yashwantrao by Savitribai Phule (2016)Zubaan

भारत में विधवाओं की दुर्दशा से सहानुभूति रखते हुए सावित्रीबाई ने 1854 में उनके लिए आश्रय स्थल खोला. वर्षों तक निरंतर सुधार करने के बाद, उन्होंने 1864 में परिवार से निकाली गई बेसहारा स्त्रियों, विधवाओं और बालिका वधुओं के लिए एक बड़े आश्रय स्थल के निर्माण की राह प्रशस्त की. उन्होंने उन सभी को शिक्षित किया. उन्होंने इस संस्थान में आश्रय लेने वाली एक विधवा के बेटे, यशवंतराव को भी गोद लिया.

Malvika Asher की Savitribai Phule Receiving British Accolades (2016)Zubaan

दलित वर्गों को गांव के सार्वजनिक कुएं से पानी पीने की मनाही थी. ज्योतिराव और सावित्रीबाई ने उनके पानी पीने के लिए अपने घर के पिछवाड़े में एक कुआं खोदा. इस कदम से 1868 में लोगों में आक्रोश उत्पन्न हो गया.

Malvika Asher की Savitribai Phule Setting Light to Jyotirao's Funeral Pyre (2016)Zubaan

1890 में ज्योतिराव का निधन हो गया. सभी सामाजिक नियमों की अवहेलना करते हुए उन्होंने उनकी चिता को अग्नि दी. उन्होंने ज्योतिराव की विरासत को आगे बढ़ाया और सत्यशोधक समाज का पदभार संभाल लिया.

Malvika Asher की The Legacy of Savitribai Phule (2016)Zubaan

1897 में पूरे महाराष्ट्र में बोबोनिक अथवा गिल्टी प्लेग फैल गया. सावित्रीबाई केवल दर्शक नहीं बनी रहीं, बल्कि सहायता करने के लिए प्रभावित क्षेत्रों में गईं. उन्होंने प्लेग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए पुणे के हड़पसर में एक दवाखान खोला.

अपनी बाहों में 10 वर्षीय प्लेग से पीड़ित बच्चे को अस्पताल ले जाते समय वह स्वयं इस बीमारी का शिकार हो गईं. 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया.

उनका जीवन और कार्य भारतीय समाज में सामाजिक सुधार और महिला सशक्तिकरण का साक्षी है. वह आधुनिक युग में अनेक महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्ररेणा बनी हुई हैं.

आभार: कहानी

विज़ुअल: मालविका आशेर

क्रेडिट: सभी मीडिया
कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि पेश की गई कहानी किसी स्वतंत्र तीसरे पक्ष ने बनाई हो और वह नीचे दिए गए उन संस्थानों की सोच से मेल न खाती हो, जिन्होंने यह सामग्री आप तक पहुंचाई है.
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