V. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
समझौता न करने वाली उन महिलाओं के बारे में जानिए जो भारतीय सिनेमा को वी° शांताराम की देन है
Photographic Still of actor SandhyaV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
पारंपरिक तौर पर, शुरुआती भारतीय फ़िल्मों में महिलाओं का किरदार सिर्फ़ सजावटी होता था. उनके किरदार में त्याग और विनम्रता से लेकर शातिर और दबंग अंदाज़ था, लेकिन शांताराम ने अपनी फ़िल्में असल ज़िंदगी की मज़बूत इरादे वाली महिलाओं के इर्द-गिर्द बनाई. ऐसी महिलाएं जिन्होंने अपने समाज के बनाए पारंपरिक ढर्रे को तोड़ दिया था.
Filmmaker V. Shantaram on the sets of film PadosiV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
1930 के दशक में, शांताराम की फ़िल्मों ने महिला विषयों से जुड़े सिनेमा में एक नया मानक तैयार किया. इनमें मज़बूत इरादे वाली और विद्रोही महिलाओं को दिखाया गया, जो एक जिद्दी समाज के सामने तनकर खड़ी थीं. बाद के दिनों में, मज़बूत इरादे वाले पुरुष किरदारों के इर्द-गिर्द बनाई गई फ़िल्मों में भी, मुख्य महिला किरदार महज़ सजावट की पात्र नहीं थीं. अपने करियर के ढलान के वर्षों में भी, उनकी फ़िल्में मज़बूत इरादे वाली महिला किरदारों पर आधारित थीं: लड़की सहयाद्री की, जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली, पिंजरा, और चानी.
Film still of Durga Khote from the Hindi film Amar JyotiV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
फ़िल्म अमर ज्योति (1936) की सौदामनी (दुर्गा खोटे) को अपने बेटे की कस्टडी देने से एक दुष्ट रानी और उसके मंत्री ने इनकार कर दिया. उसने विद्रोह कर दिया और डाकू बन गई, जिसमें उसकी मदद छोटी रेखा (वसंती घोरपड़े) ने की. राजकुमारी नंदिनी (शांता आप्टे) को ले जा रहे जहाज़ को उसने बीच समुद्र में पकड़ लिया. सौदामनी का बदला लेने के लिए तीन टीमें बनाई गईं. सामाजिक सुधार को दिखाने वाला यह ड्रामा, तेज़ी से आगे बढ़ने वाली साहसिक कहानी की तरह लगता है. दुर्गा खोटे और शांता आप्टे ने अच्छा काम किया, लेकिन छोटी वसंती घोरपड़े ने सबका दिल जीत लिया.
Actor Shanta Apte confronts the womenV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
कुंकू (मराठी) की नीरा/ दुनिया ना माने (हिन्दी) (1937) की निर्मला, पत्नी की तरह रहने से इनकार कर देती है, क्योंकि उसकी शादी धोखे से एक बुज़ुर्ग विधुर काकासाहेब के साथ कराई गई थी. वह कहती है कि वह दुख सह सकती है, लेकिन अन्याय नहीं. वह परिवार के बाकी सदस्यों के साथ तब तक रिश्ता बनाने की कोशिश करती है, जब तक विधवा बेटी चित्रा उसके सामने नारीवादी नज़रिया लेकर नहीं आती. काकासाहेब का नज़रिया बदल जाता है. मुख्य भूमिका निभा रहीं शांता आप्टे में, इस किरदार के लिए ज़रूरी दृढ़ता दिखती है.
Actors Shanta Hublikar and Shahu ModakV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
शांता हुबलीकर ने आदमी (हिन्दी)/माणूस (मराठी) (1939) में मैना की भूमिका निभाई, जो समाज के हाशिए पर रहने वाली महिला है. पुलिस की छापेमारी में वह पकड़ी जाती है, लेकिन कॉन्स्टेबल गणपत (शाहू मोदक) उसे भगा देता है. दोनों के बीच सामाजिक तौर पर स्वीकार न किए जाने वाला प्रेम संबंध पनपता है, लेकिन यह ऐसा प्रेम है जिसे छोड़ा नहीं जा सकता. गणपत उसे समाज से जोड़ने की पूरी कोशिश करता है, लेकिन मैना को लगता है कि उस पर लगे दाग की वजह से, समाज उसे स्वीकार नहीं कर पाएगा. इसलिए, वह उसे सताने वाले व्यक्ति की हत्या कर देती है और मौत की सज़ा पाती है.
Film Still of actors Chandramohan and Jayashree from film ShakuntalaV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
प्राचीन कवि कालीदास ने शकुंतला की कहानी को अमर बना दिया था. शकुंतला का जन्म ऋषि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका के नाजायज़ संबंध से हुआ था. उनका पालन-पोषण ऋषि कण्व के आश्रम में हुआ और वहीं उन्हें राजा दुष्यंत से प्यार हो गया. दुष्यंत ने गुपचुप तरीके से उनसे शादी की, लेकिन बाद में इस बात से इनकार कर दिया कि वे शकुंतला से कभी मिले भी थे. शांताराम ने पहली बार 1943 में शकुंतला बनाई. इस फ़िल्म में राजा दुष्यंत की भूमिका निभा रहे चंद्रमोहन के सामने, जयश्री को शकुंतला के किरदार में कास्ट किया गया. शांताराम इस फ़िल्म से संतुष्ट नहीं हुए और 1961 में उन्होंने स्त्री नाम से इसे दोबारा बनाया. इस फ़िल्म में संध्या और शांताराम खुद मुख्य भूमिका में थे.
Still of actor Jayashree from the film Dr. Kotnis Ki Amar KahaniV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
हालांकि, फ़िल्म डॉ॰ कोटनिस की अमर कहानी (1944), डॉ॰ द्वारकानाथ कोटनिस (जिनकी भूमिका खुद शांताराम ने निभाई है) और उनके पुरुष साथियों के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन एक चाइनीज़ लड़की चिंग लैंग से उन्हें प्यार हो जाता है. वह लड़की हर मुश्किल हालात में, डॉ॰ कोटनिस के साथ पूरी मज़बूती से खड़ी रहती है. जयश्री ने बेहद सहजता से उस भूमिका को निभाया. हालांकि, वह एक छोटी-सी भूमिका थी, लेकिन उनकी सबसे बेहतरीन भूमिकाओं में से एक थी.
Film Still of actors Lalita Pawar Prithviraj and Jayashree from the film DahejV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
फ़िल्म दहेज (हिन्दी) (1950) में जयश्री ने चंदा का किरदार निभाया, जिसकी शादी प्रभावशाली वकील के बेटे सूरज से होती है. हालांकि, चंदा के पिता पहले ही यह साफ़ कर देते हैं कि वे दहेज नहीं दे पाएंगे, लेकिन चंदा की लालची सास उसकी ज़िंदगी को नरक बना देती है. 1940 और 1950 के दशक में, शायद ज़्यादातर मध्यवर्गीय भारतीय घरों में इस तरह का क्लासिक मेलोड्रामा, असल ज़िंदगी में घट रहा था. इसी वजह से, दहेज कानून में बदलाव हुआ.
The six leading ladies of the film Teen Batti Chaar RaastaV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
फ़िल्म तीन बत्ती चार रास्ता (1953) में, छह प्रमुख महिलाएं (संध्या, शशिकला, शीला रमानी, स्मृति बिस्वास, मीनाक्षी, निरूपा रॉय) केंद्रीय भूमिका में हैं. यह एक शानदार सामाजिक कॉमेडी फ़िल्म है और भारत के बहुभाषी समाज से प्रेरित है. पंजाब के रहने वाले लाला गुलाबचंद के छह बेटे हैं. उनमें से पांच की शादी अलग-अलग राज्यों की लड़कियों से होती है: मराठी, सिंधी, बंगाली, तमिल, और गुजराती. छठे बेटे को एक रेडियो गायिका कोकिला से प्यार हो जाता है, जिसे उसने देखा तक नहीं है. बाद में पता चलता है कि वह गायिका कोई और नहीं, बल्कि उनकी सांवली रंग की नौकरानी श्यामा है. बेहद साधारण दिखने वाली संध्या ने लाखों लोगों का दिल जीता. इनमें वी॰ शांताराम भी शामिल थे, जिन्होंने बाद में उनसे शादी कर ली.
Still of actor Sandhya from the film Do Aankhen Barah HaathV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
फ़िल्म दो आंखें बारह हाथ (1957) की चंपा एक कामुक महिला है जो खिलौना बेचती है. पुरुषों की खुली जेल पर आधारित इस मेलोड्रामा में, यह किरदार थोड़ा अटपटा लग सकता है, लेकिन फ़िल्म में इसका एक खास मकसद है: इससे फ़िल्म की बेहद कठोर थीम को न सिर्फ़ एक नर्म स्त्रीवादी पुट मिलता है, बल्कि कई जगहों पर इस किरदार ने कहानी को भी आगे बढ़ाने में मदद की.
Film Still of actor Sandhya from the film NavrangV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
नवरंग (1959) में, साधारण-सी दिखने वाली जमुना की शादी कवि दिवाकर से होती है. रोमैंटिक दिवाकर का दिल मोहिनी पर फ़िदा है, जो उसके ख्वाबों में रहने वाली एक बेहद ग्लैमरस काल्पनिक लड़की है. वह उसकी तारीफ़ में गाने लिखता है. वहीं, जमुना को लगता है कि मोहिनी सचमुच कोई लड़की है. इसलिए, वह चिढ़ जाती है और दिवाकर से लड़ाई कर बैठती है. साथ ही, उसका घर छोड़कर अपने पिता के घर चली जाती है. हालांकि, उसे पता नहीं होता कि दिवाकर की असली प्रेमिका वह खुद है. एक बार फिर, संध्या ने इस दोहरी भूमिका को शानदार तरीके से निभाया, लेकिन झगड़ालू जमुना के रूप में तो उन्होंने कमाल ही कर दिया.
Film Still of actor Sandhya from the film Jal Bon MachchliV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
फ़िल्म जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली (1971) की अलकनंदा घर से भागकर, राजकुमार कैलाश की नाटक मंडली में शामिल हो जाती है. बाद में, उसे कैलाश से प्यार हो जाता है. एक परफ़ॉर्मेंस के दौरान, उसका पैर जख्मी हो जाता है और डॉक्टर उसे बताते हैं कि वह फिर से कभी डांस नहीं कर पाएगी. टूटे दिल के साथ वह एक बार फिर भाग जाती है. बाद में, कैलाश उसे बचाता है और कहता है कि वह अपने असली हुनर को पहचाने और दोबारा डांस करे. संध्या ने इसमें अलकनंदा का किरदार निभाया है. साथ ही, फ़िल्म की कोरियोग्राफ़ी की है.
Still of actor Sandhya from the film PinjraV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
फ़िल्म पिंजरा (हिन्दी और मराठी) (1972) में संध्या ने बदला लेने वाली तमाशा डांसर की भूमिका निभाई है. इसकी कहानी, मर्लेन डिट्रिक की क्लासिक फ़िल्म Der Blaue Engel यानी द ब्लू एंजल से ली गई थी. साथ ही, इस पर 'नोरा प्रैंटिंस' का भी असर था. नैतिकतावादी स्कूल टीचर श्रीधर पंत, चंद्रकला को गांव में परफ़ॉर्म नहीं करने देना चाहता. इसलिए, उससे बदला लेने के लिए चंद्रकला षडयंत्र रचती है. हालांकि, जब उसका बदला पूरा होता है, तो उस क्रूरता को देखकर उसे बुरा लगता है और वह टूट जाती है.
Film Still of actor Sandhya from the film Iye MarathiV. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation
समझौता नहीं करने वाली मज़बूत महिलाओं के किरदार, शांताराम की फ़िल्मों की धुरी रही हैं. उन फ़िल्मों में भी, जब मुख्य भूमिका में कोई पुरुष हो (डॉ॰ कोटनिस की अमर कहानी, दो आंखें बारह हाथ). हालांकि, जैसे-जैसे फ़िल्म पर मनोरंजन हावी होने लगा, सामाजिक सुधार की बात पीछे छूट गई. शांताराम की बाद की ज़्यादातर फ़िल्मों में, काग़ज़ पर महिला किरदार मज़बूत दिखती हैं, लेकिन वे उतनी असरदार साबित नहीं हुईं.
ये तस्वीरें वी॰ शांताराम मोशन पिक्चर ऐंड साइंटिफ़िक रिसर्च ऐंड कल्चरल फ़ाउंडेशन के संग्रह से ली गई हैं.
वी॰ शांताराम के बेटे किरण वी° शांताराम का विशेष आभार
टेक्स्ट और क्यूरेशन: संजीत नार्वेकर
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