एल्लोरा: चट्टान काटकर बनी शानदार मूर्तियों की परिकाष्ठा

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एल्लोरा में मौजूद हिंदू, बौद्ध, और जैन गुफाएं, चौथी और 9वीं सदी के बीच तराशी गई थीं. एल्लोरा की गुफाएं, चट्टान काटकर बनाई गई धराेहराें के बेहतरीन उदाहरणों में से एक मानी जाती हैं. ये करीब 1,500 साल पहले राष्ट्रकूट वंश में बनाई गई थीं. 34 गुफाओं में से 12 बौद्ध, 17 हिंदू, और 5 जैन गुफाएं हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित की गई एल्लोरा की गुफाओं को 1983 में विश्व धराेहर स्थल घोषित किया गया था.

एल्लोरा की सभी गुफाओं में से सबसे प्रमुख 14, 15, 16, 21, और 29वीं गुफाएं हैं. यहां दिखाई गई 14वीं गुफा में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं.

कैलाश के नाम से मशहूर, एल्लोरा की 16वीं गुफा में सबसे शानदार कलाकृतियां हैं.

एक ही चट्टान काटकर बनाई गई यह गुफा एक बहु-मंज़िला मंदिर जैसी दिखती है.

कैलाश के आंगन में दो विजय स्तंभ हैं और इसकी दीवारों को तराशे गए पैनलों से सजाया गया है.

आंगन में दो विशाल हाथियाें की मूर्तियां भी हैं.

कलचुरि, चालुक्य, और राष्ट्रकूट शासकों के शासन के दौरान खाेदी गई एल्लोरा की हिंदू गुफाओं में कई शानदार मूर्तियां हैं. इसमें प्लास्टर के निशान भी हैं जिससे पता चलता है कि यहां और मूर्तियां भी बनाई गई थीं.

15वीं गुफा एक हिंदू स्मारक है जो एल्लोरा की कुछ बौद्ध गुफाओं से मिलता-जुलता है. इसमें एक विशाल दरबार है जो ठोस चट्टान से बना है. गुफा में एक शिलालेख राष्ट्रकूट के वंश के बारे में बताता है जिन्हाेंने इस इलाके में 600 ईसवी से 10वीं सदी तक शासन किया था. दो मंज़िला गुफा के बाहरी हिस्से में काफ़ी बारीक नक्काशी है और इसकी छत पर इंसानाें और जानवरों की मूर्तियां बनाई गई हैं.

15वीं गुफा के अंदरूनी हिस्से में, बास रिलीफ़ शैली की खूबसूरत कलाकृतियां बनी हुई हैं. फूलों से लेकर सांपों की कलाकृतियां हाें या बौनों की उकेरी गई मूर्तियां, ये गुफाएं अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए मशहूर हैं.

15वीं गुफा की बालकनी के आखिर में चार हाथाें वाले रुद्र की मूर्ति है. गौरतलब है कि भैरव या महादेव की जिस मूर्ति में उन्हें एक विशाल रूप में दिखाया है उसमें उन्हाेंने हाथी की खाल को पकड़ा हुआ है और खोपड़ियाें से बना एक कमरबंद पहना है.

21वीं गुफा काे रामेश्वर गुफा के रूप में जाना जाता है. इसमें गंगा और यमुना के सुंदर चित्र बने हैं.

एल्लोरा की 29वीं गुफा, स्थानीय रूप से सीता की नहानी के रूप में मशहूर है और यह एलिफ़ेंटा की महान गुफा से मिलती-जुलती है. इसमें कई अद्भुत मूर्तियां भी हैं.

छठी और सातवीं सदी ईसवी के बीच बनाई गई, नक्काशीदार बौद्ध गुफाएं ज़्यादातर विहार या मठ हैं. इनमें से कुछ में मंदिर भी बने हैं जिनमें भगवान बुद्ध और बोधिसत्वों के चित्र उकेरे गए हैं.

बेहद बारीकी से उकेरी गई मूर्तियाें वाली इस 10वीं गुफा को देवताओं के वास्तुकार विश्वकर्मा के रूप में जाना जाता है. इसमें स्तूप के सामने बुद्ध का एक बहुत बड़ा चित्र है. साथ ही, चट्टानाें काे काटकर बनाया गया एक छज्जा भी है.

पाँचवीं गुफा एल्लोरा की सबसे प्रमुख गुफाओं में से एक है. इसमें एक बड़े सभा-भवन के साथ-साथ, बीच में 18 मीटर से ज़्यादा लंबी दाे बेंच हैं. यह गुफा शायद वह जगह थी जहां बौद्ध सूत्र के सामूहिक पाठ किए गए थे.

एल्लोरा की 11वीं और 12वीं गुफाओं काे दाे ताल और तीन ताल कहा जाता है और ये काफ़ी सुंदर हैं.

एल्लोरा की 11वीं और 12वीं गुफाएं तीन मंज़िला हैं और इनमें मठ से जुड़ी बौद्ध वास्तुकला काे खूबसूरती से दिखाया गया है.

30वीं से 34वीं गुफाएं, जैन गुफाएं हैं. 32वीं गुफा या इंद्र सभा अधूरी है, लेकिन यह सबसे शानदार है.

32वीं गुफा की ऊपरी मंज़िल सबसे ज़्यादा बड़ी और सबसे नक्काशीदार हिस्सा है. इसमें सुंदर खंभे, बड़े मूर्तिकला पैनल, और छत पर पेंटिंग बनी हैं. एल्लोरा की सभी गुफाओं में से, जैन गुफाओं में छत और दीवार पर सबसे ज़्यादा पेंटिंग हैं.

जैन गुफाओं की आखिरी गुफा यानी 34वीं गुफा में एक छोटा मंदिर है जिसमें तीर्थंकरों के चित्र है. इस मंदिर के दरवाज़े पर उदारता की देवी सिद्धिका, और समृद्धि के भगवान मातंग की सुंदर मूर्तियां बनाई गई हैं.

सैलानी, एलोरा में 30वीं गुफा को अपना आखिरी पड़ाव मान सकते हैं. हालांकि यह गुफा अधूरी है, लेकिन यह प्रसिद्ध हिंदू कैलाश मंदिर जैसी दिखती है. ये गुफा मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली में बनाई गई है और इसमें एक ऊंचा शिखर है. इसमें 22 जैन तीर्थंकरों और भगवान महावीर के सिंहासन पर बैठे हुए चित्र बने हैं. चट्टानाें काे काटकर बनाया गया यह हाथी, गुफा की खूबसूरती में चार चांद लगाता है.

आभार: कहानी

वर्चुअल रियलिटी दौरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सौजन्य से

क्रेडिट: सभी मीडिया
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