क़ुतुब मीनार: दुनिया की सबसे ऊंची ईंटों की मीनार

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कुतुब मीनार भारत की राजधानी दिल्ली में मौजूद तीन विश्व धरोहराें में से एक है. गज़नी ने अपनी जीत पर जाे मीनारें बनवाई थीं उनकाे देखकर 1192 ईसवी में कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने कुतुब मीनार का काम शुरू करवाया था. कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने भारत में मामलूक वंश की शुरुआत की थी. इसकी अवधी थी सन 1206-1290 तक. वह इस इमारत काे पूरा होते नहीं देख पाए. यह मीनार नीचे से चौड़ी और ऊपर से सकरी बनाई गई है. इसके नीचे के हिस्से में कुवत-उल-इस्लाम की मस्जिद बनी है. यह भारत में बनने वाली पहली मस्जिद थी.

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कुतुब-उद-दीन-ऐबक के उत्तराधिकारी, इल्तुतमिश और फिरोज़ शाह तुगलक ने मीनार का बचा हुआ काम पूरा करवाया. कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने मीनार का निचला हिस्सा पूरा बनवा दिया था. इसके बाद इल्तुतमिश ने तीन मंज़िलें और फिरोज़ शाह ने आखिरी मंज़िल बनवाई.

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73 मीटर ऊंचे कुतुब मीनार में पाँच मंज़िलें हैं. इसकी हर मंज़िल के चाराें तरफ़ छज्जे भी हैं. पहली तीन मंज़िलें सिर्फ़ लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं, वहीं चौथी और पाँचवीं मंज़िल पर संगमरमर का भी इस्तेमाल किया गया है.

इसके पूर्वी गेट के एक शिलालेख के अनुसार, मस्जिद बनाने की सामग्री पहले से मौजूद इमारताें से इकट्ठा की गई थी.

तीसरी मंज़िल के झराेखे से कुतुब मीनार और इसके आस-पास का शानदार नज़ारा दिखाई देता है.

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लौह स्तंभ, दिल्ली की सबसे पुरानी इमारताें में से एक है और यह कुतुब मीनार के पास मौजूद है. इसे चौथी सदी ईसा पूर्व में बनाया गया था. करीब 24 फ़ीट ऊंचा और छह टन से ज़्यादा भारी यह स्तंभ, ऐसे लाेहे से बना है कि इसमें ज़ंग नहीं लगती. अपनी इस खासियत के लिए यह काफ़ी मशहूर है.

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आने वाले सैलानियाें के बीच कुतुब मीनार की एक बात मशहूर है कि अगर आप स्तंभ से अपनी पीठ लगाकर, दाेनाें हाथाें से स्तंभ को अपनी बाहों से घेर सकते हैं, तो आपकी इच्छाएं पूरी होंगी. इसका एक उदाहरण हिंदी फ़िल्म "चीनी कम" के एक हिस्से में देखा जा सकता है. इस फ़िल्म में महान अभिनेता अमिताभ बच्चन ने अभिनय किया है.

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कुतुब मीनार में सैलानी अलाई दरवाज़ा घूमने भी जा सकते हैं. यह लाल बलुआ पत्थर से बना एक गुंबददार दरवाज़ा है जिसे सफ़ेद संगमरमर की शिलाओं से सजाया गया है. अलाउद्दीन खिलजी का बनवाया गया यह दरवाज़ा तुर्की के कारीगरों की कुशलता का एक शानदार नमूना है.

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इस दरवाज़े के पास ही अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बनवाई हुई अलाई मीनार मौजूद है. खिलजी इस इमारत काे कुतुब मीनार से दाे गुना ऊंचा बनाना चाहता था.

अफ़साेस की बात है कि सन् 1316 में खिलजी की मौत के बाद, इस मीनार का काम ठप हो गया. आज भी, यहां इस मीनार की पहली मंज़िल की चुनाई और मलबा देखा जा सकता है.

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कुतुब मीनार के पास ही इल्तुतमिश का मकबरा भी है. सम्राट इल्तुतमिश ने खुद इस मकबरे काे बनवाया था. यह दिल्ली के पहले मकबराें में से एक है.

सैलानी, महरौली के पुरातत्व पार्क में भी घूमने जा सकते हैं जिसमें बलबन का मकबरा है.

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कुतुब मीनार में जमाली कमाली मस्जिद और एक सूफ़ी संत का मकबरा है. शास्त्रीय नृत्य और संगीत के कार्यक्रमाें वाला तीन दिवसीय कुतुब महोत्सव हर साल नवंबर और दिसंबर के बीच आयाेजित हाेता है और इस दौरान काफ़ी भीड़ इकट्ठी है. कुतुब मीनार के ऊपर से दिखने वाला यह शानदार नज़ारा इस विश्व धरोहर स्थल से दिखने वाले अद्भुत नज़ाराें में से एक है.

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अलाउद्दीन खिलजी का मकबरा देश का पहला ऐसा मकबरा है जाे कि एक मदरसा भी है. मदरसाें में बच्चाें काे इस्लामिक शिक्षा दी जाती है. मदरसे के बीच बने कमरे में मकबरा बना है. इसका गुंबद अब नहीं है, लेकिन कमरे अब भी बरकरार हैं.

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इस मदरसे की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने धर्म और इस्लामी धर्मग्रंथों की शिक्षा देने के लिए की थी. आप यहां एक चतुर्भुज दरबार के आस-पास बने हॉल और कमरों के खंडहर देख सकते हैं.

माना जाता है कि पश्चिमी तरफ़ बने सात छोटे ढांचे शिक्षकों के कमरे थे. उत्तर दिशा में एक बारीक नक्काशी वाला दरवाज़ा बना है जिसे मुख्य दरवाज़ा माना जाता है.

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क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, कुतुब मीनार के ठीक बगल में बनी है. इस मस्जिद को कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने बनवाया था. इसे कुतुब परिसर में पहली इमारत माना जाता है.

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सादगी से परे, इल्तुतमिश के मकबरे में एक भव्य मुख्य दरवाज़ा है जिस पर बारीक नक्काशी की गई है और यह ज्यामितीय पैटर्न से सजा है. साथ ही, इस पर 'कुफ़िक' और 'नस्क' शैली में शिलालेख हैं.

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सन् 1500 के आस-पास भारतीय उपमहाद्वीप में बसने वाले, तुर्किस्तान के एक संत, इमाम ज़ामिन ने अपने लिए यह मकबरा बनवाया था. बलुआ पत्थर से बना यह मकबरा, आठ कोनों वाले आधार पर खड़ा है. एक छोटे से गुंबद वाला यह मकबरा आकर्षक वास्तुकला का नमूना है. इसमें जालियां लगी हैं. सन् 1538 में इमाम ज़ामिन को इस मकबरे में दफ़नाया गया था.

आभार: कहानी

वर्चुअल रियलिटी दौरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सौजन्य से

क्रेडिट: सभी मीडिया
कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि पेश की गई कहानी किसी स्वतंत्र तीसरे पक्ष ने बनाई हो और वह नीचे दिए गए उन संस्थानों की सोच से मेल न खाती हो, जिन्होंने यह सामग्री आप तक पहुंचाई है.
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