आनंदीबाई जोशी

अमेरिका में वेस्टर्न मेडिसिन की पढ़ाई करने वाली और उसमें ग्रैजुएशन की डिग्री लेने वाली, भारतीय मूल की पहली महिला

Indian Academy of Sciences की पेशकश

भारतीय विज्ञान अकादमी, मीरा कोसांबी और अबान मुखर्जी की लिखी गई आत्मकथा के नोट पर आधारित टेक्स्ट, और दिलीप कुमार चंदा (कलाकार)

Anandibai JoshiIndian Academy of Sciences

आनंदीबाई जोशी (वैसे, उनका पूरा नाम आनंदी गोपाल जोशी था, लेकिन ज़्यादातर लोग उन्हें आनंदीबाई जोशी या आनंदी गोपाल के नाम से जानते थे. हालांकि, कुछ लोग उन्हें जोशी के नाम से भी जानते थे) वेस्टर्न मेडिसिन में डॉक्टर बनने वाली पहली भारतीय महिला थीं. वे महाराष्ट्र की ऐसी पहली महिला भी थीं जो उच्च शिक्षा के लिए विदेश गई थीं. जब उन्हें मार्च 1886 में पेंसिलवेनिया के विमिंस मेडिकल कॉलेज से डिग्री मिली, तब वे सिर्फ़ इक्कीस साल की थीं. भारत वापस आने के एक साल बाद, वे अपने बाइसवें जन्मदिन से एक महीने पहले, पुणे में गुज़र गईं.

Dilip Kumar Chanda की Anandibai Joshee - Marriage (2018)Indian Academy of Sciences

आनंदीबाई का जन्म चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी शादी नौ साल की उम्र में गोपालराव जोशी से हुई थी. शादी से पहले आनंदीबाई को यमुना के नाम से जाना जाता था.

Dilip Kumar Chanda की Anandibai Joshee - Birth of Her Son (2018)Indian Academy of Sciences

उन्होंने चौदह साल की उम्र में एक बेटे को जन्म दिया, लेकिन जन्म के बाद ही उसकी मौत हो गई थी. इससे उन पर शारीरिक और भावनात्मक रूप से बहुत असर पड़ा. वे उस समय खुद एक बच्ची थीं, ऐसे में अपने बच्चे को खोने के दुख ने उन्हें डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित किया. उस समय ज़्यादातर भारतीय महिलाएं, पुरुष डॉक्टर के पास नहीं जा सकती थीं या यूं कहें कि जाना नहीं चाहती थीं. आनंदीबाई को लगा कि महिला डॉक्टर बनने के बाद वे दूसरी भारतीय महिलाओं की मदद कर पाएंगी.

Dilip Kumar Chanda की Anandibai Joshee - Education (2018)Indian Academy of Sciences

आनंदीबाई ने 1883 में अमेरिका की यात्रा की. वहां वे मिसेज़ थियोडिशिया कारपेंटर के घर गईं. इनके साथ आनंदीबाई ने कुछ साल पहले चिट्ठियां भेजकर बातें करनी शुरू की थीं. कारपेंटर परिवार की मदद से आनंदीबाई को पेंसिलवेनिया (फ़िलाडेल्फ़िया) में दाखिला मिल गया. यहां उन्होंने दो साल में अपनी डिग्री की पढ़ाई पूरी की. यह उस समय की एक शानदार उपलब्धि थी, जब ज़्यादातर भारतीय महिलाओं को पढ़ने भी नहीं दिया जाता था.

उन्होंने अपनी पढ़ाई काफ़ी तेज़ी से पूरी की. यह काफ़ी मेहनत और थकान भरा था. उन्होंने पढ़ाई पूरी करने में आखिर तक अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. वे जब भारत से अमेरिका गईं, तब भी उनकी सेहत खराब थी और आगे भी इसमें सुधार नहीं हुआ: पेंसिलवेनिया के विमिंस मेडिकल कॉलेज के डीन, बॉडले ने आनंदीबाई की देखभाल की थी. वे इतनी बीमार थीं कि खुद की देखभाल भी नहीं कर सकती थीं. उन पर अंग्रेज़ी सीखने का इतना दबाव था कि वे कुछ समय के लिए मराठी भूल गई थीं.

Dilip Kumar Chanda की Anandibai Joshee - Studies as a Doctor (2018)Indian Academy of Sciences

अपनी पढ़ाई की वजह से, वे समय के साथ समझदार होती गईं. साथ ही, उनका ज्ञान भी बढ़ता गया. वे लोगों को अपनी बात आसानी से समझा सकती थीं. जैसे-जैसे आनंदीबाई का ज्ञान बढ़ा, उनके सोचने और काम करने के तरीके में अपने पति के मुकाबले ज़्यादा खुलापन आने लगा था. वे मुश्किल फ़ैसले लेने से नहीं घबराती थीं. खुद की और अपने देश की आलोचना करने वालों को वे सार्वजनिक रूप से जवाब देती थीं. वे जानती थीं कि उन्हें आने वाले समय में क्या करना है. अपने छोटे से जीवन के आखिर तक, वे खुद से काफ़ी ज़्यादा उम्र के पति से समझ-बूझ के मामले में बहुत आगे निकल गई थीं. हालांकि, वे जीवन भर उनकी एहसानमंद रहीं, क्योंकि उन्होंने ही आनंदीबाई के लिए शिक्षा की राह बनाई थी.

Dilip Kumar Chanda की Anandibai Joshee (2018)Indian Academy of Sciences

आनंदीबाई न सिर्फ़ वेस्टर्न मेडिसिन में मेडिकल डिग्री लेने वाली पहली भारतीय महिला थीं, बल्कि वे ऐसे समय में नारीवादी और राष्ट्रवादी भी थीं जब औरतें बाहर नहीं निकलती थीं. हालांकि, आनंदीबाई वैज्ञानिक तो नहीं थीं, लेकिन उन्होंने मेडिकल की छात्रा होते हुए भी सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर लिखा और रीसर्च की. वे एक समझदार महिला थीं जो खुद के और अपने समाज के लिए जागरूक थीं. समसामयिक लैंगिक मुद्दों पर उनके आज़ाद खयाल थे. वे भारत में महिलाओं की शिक्षा से जुड़ी मुश्किलों के बारे में बात करने से डरती नहीं थीं. इसके बावजूद, वे भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवादी पहचान से जुड़ी हुई थीं.

Dilip Kumar Chanda की Anandibai Joshee's Gravestone in New York State (2018)Indian Academy of Sciences

आनंदीबाई ने मेडिकल करियर चुना, क्योंकि वे ऐसी महिलाओं की मदद करना चाहती थीं जिनके पास ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं थीं. उन्होंने कई मुश्किलों के बावजूद, अपने इस फ़ैसले के बारे में सार्वजनिक रूप से बात की. उनकी निजी ज़िंदगी भी कई तरह की मुश्किलों से भरी हुई थी. उनकी ज़िंदगी कई तरह की घटनाओं से भरी हुई थी जिसे देखते हुए यह विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि पश्चिम के देशों के डॉक्टर और भारतीय वैद्यों के इलाज के बावजूद, वे कम उम्र में ही चल बसीं. हिन्दू रीति-रिवाजों के मुताबिक उनके अंतिम संस्कार के बाद, गोपालराव ने आनंदीबाई की अस्थियों को पवित्र नदी में बहाने के बजाय, उनके 'अमेरिकी परिवार' को भेज दीं. ये अस्थियां मिसेज़ कारपेंटर के परिवार के शवों के साथ न्यूयॉर्क में दफ़न हैं. मरने के बाद भी, वे उनके करीब रहीं.

आज भी भारतीय महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी हालत में नहीं हैं. आनंदीबाई की कहानी उन उपलब्धियों के लिए याद की जाती है जिन्हें हासिल करना अभी बाकी है. हालांकि, समय से पहले उनकी मौत, भारतीय महिलाओं की आज़ादी के लिए बुरी थी, लेकिन फिर भी आनंदीबाई आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं.

आभार: कहानी

टेक्स्ट: मीरा कोसांबी और अबान मुखर्जी की लिखी गई आत्मकथा के नोट पर आधारित
कलात्मक तस्वीरें: दिलीप कुमार चंदा

क्रेडिट: सभी मीडिया
कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि पेश की गई कहानी किसी स्वतंत्र तीसरे पक्ष ने बनाई हो और वह नीचे दिए गए उन संस्थानों की सोच से मेल न खाती हो, जिन्होंने यह सामग्री आप तक पहुंचाई है.
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