Museum of Design Excellence की पेशकश
By Divya Thakur
सिनेमा, खास तौर पर भारतीय सिनेमा में, देश की संस्कृति की झलक साफ़ तौर पर देखी जा सकती है. साथ ही, इससे देश के मौजूदा हालात का पता चलता है और यह सोचा जा सकता है कि देश के सुनहरे भविष्य के लिए क्या किया जा सकता है. सिनेमा, हाई-आर्ट, लो-आर्ट, आर्ट-हाउस, अंडरग्राउंड, पॉप कल्चर, और सब-कल्चर को दिखाने का काम बखूबी करता है. यह विविधताओं से भरी एक जगह है, जहां ऐतिहासिक बायोपिक, पारिवारिक ड्रामा शो, करोड़ों के सेट, डांस के शानदार स्टेप, मनमोहक संगीत, मशहूर अभिनेताओं-अभिनेत्रियों, और उनकी नई पोशाकों के ज़रिए जादू बिखेरा जाता है. यह कहना कोई बड़ी बात नहीं होगी कि फ़िल्मी दुनिया के सितारों के अलावा ऐसा कोई नहीं है जो 130 करोड़ लोगों के दिल, दिमाग, और पहनावे पर असर डाल सके.
भारतीय सिनेमा, 1890 के दशक में अस्तित्व में आया. शुरुआत से ही, भारतीय सिनेमा ने मूक फ़िल्मों, टॉकीज़, गोल्डन एज के साथ-साथ आधुनिक और मौजूदा समय के अद्भुत दौर देखे. भारतीय सिनेमा, धुरी की कील के जैसे, कई दशकों तक तेज़ी से बेहतर होते डिज़ाइनों के दौर को संभालता आया है.
दो हिस्सों में बांटे गए इस प्रदर्शन में, भारतीय सिनेमा के फ़ैशन के कई मुख्य पहलुओं के बारे में बात की गई है. इसमें बताया गया है कि समय-समय पर भारतीय पोशाकों में हुए कुछ बदलावों ने कैसे देश और दुनिया में अपनी छाप छोड़ी.
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Dress Sari (2022)मूल स्रोत: MoDE
सदाबहार साड़ी
फ़िल्मी पर्दे पर कॉकटेल साड़ी का चलन, 1920 के दशक के आखिर में शुरू हुआ. इस साड़ी का लुक और चमक-दमक, चार्लस्टन ड्रेस जैसी होती है. सीता देवी, देविका रानी, पेशैंस कूपर, और ज़ुबैदा जैसी अभिनेत्रियों ने अपनी फ़िल्मों में इस साड़ी को पहना, जिससे लोगों में इसकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई.
सदाबहार साड़ी
उस समय की ज़्यादातर फ़िल्में समाज सुधार, बलिदान, और आज़ादी के थीम पर आधारित होती थीं. हालांकि, फ़ैशन के मामले में, फ़िल्मों में भारतीय और पश्चिमी शैली का मिला-जुला रूप देखने को मिलता था. कॉकटेल साड़ियां लेस, साटन, कॉटन, और सिल्क से बनी होती थीं. इन साड़ियों की खासियत थी कि इन्हें पहनने पर न तो पूरा शरीर ढका रहता था और न ही पूरी तरह खुला रहता था. यह स्टाइल लोगों को बहुत आकर्षक लगती थी.
Devika Rani in Karma (1933)मूल स्रोत: Himanshu Rai (Producer)
Fatima Begum (1920s)Museum of Design Excellence
Film still of Enakshi Rama Rao in Shiraz (1928)मूल स्रोत: Himansu Rai (Producer)
Seeta Devi (1920s)Museum of Design Excellence
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Power Suit (2022)मूल स्रोत: MoDE
पावर सूट
मैरी एन ऐवेंस अपने स्टेज नाम, फ़ीयरलेस नाडिया के तौर पर जानी जाती थीं. उन्होंने महिला किरदारों के अलावा, ऐसे किरदार भी निभाए जिन्हें आम तौर पर पुरुष निभाते थे. इन किरदारों के लिए, उन्होंने पावर सूट पहना. इस तरह उन्होंने समाज में फैले लैंगिक रूढ़िवाद को खुली चुनौती दी. उनके ऐक्शन वाले किरदारों के लिए, ऐसे कपड़ों की ज़रूरत होती थी जिनसे चलने-फिरने और स्टंट वाले सीन करने में सहूलियत हो. जैसे, स्ट्रेट-कट पैंट, शर्ट, और वेस्टकोट. उन्होंने बॉक्स ऑफ़िस पर हिट फ़िल्म हंटरवाली (1935) में, ऐसे ही कपड़े पहनकर अभिनय किया था.
पावर सूट
फ़ीयरलेस नाडिया को फ़िल्मों में अक्सर ऐसी वेशभूषा में देखा जाता था जिसे मूल रूप से “पुरुषों की वेशभूषा” के तौर पर जाना जाता था. उनके ऐसे किरदारों से कई महिलाओं को ऐसी वेशभूषा पहनने और पुरुषों वाले किरदार निभाने की प्रेरणा मिली. इस तरह, उन्होंने साबित किया कि महिलाएं सिर्फ़ घर-गृहस्थी के किरदार तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वे किसी भी तरह का अभिनय कर सकती हैं. उदाहरण के लिए, आन फ़िल्म (1952) में नादिरा ने छोटे और घुंघराले बाल वाली महिला का किरदार निभाया. इसमें उन्होंने ऐसा ब्लेज़र पहना जो घुटनों तक जाता था और उसके कंधे पर पैड लगे हुए थे. इसके अलावा, उन्होंने ब्रीचिज़, जूते, और गुलूबंद पहना.
Film still of Fearless Nadia in Hunterwali (1935)मूल स्रोत: Homi Wadia (Producer)
Film still of Nadira in Aan (1952)मूल स्रोत: Mehboob Khan (Producer)
James Burke की Indian Movie Queen (1963)LIFE Photo Collection
The House of Pixels की Silhouettes of Indian Style | Sonam Kapoor (2022)मूल स्रोत: The House of Pixels
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Play Suit (2022)मूल स्रोत: MoDE
प्ले सूट
प्ले सूट के ज़रिए आज़ादी, भावनाओं की अभिव्यक्ति, और खुद की पहचान बनाने की कोशिश की गई. प्ले सूट को कई तरह से पहना जा सकता था. जैसे, बंधने वाले टॉप, क्रॉप की गई टॉप, टी-शर्ट या बिना आस्तीन वाले ब्लाउज़ के साथ फ़िट, हाई-वेस्ट, और घुटने से थोड़े नीचे तक के पैंट.
प्ले सूट
नरगिस ने फ़िल्म श्री 420 (1955) में अपने मशहूर किरदार के लिए प्ले सूट पहना था. इसके बाद से, यह पोशाक लोकप्रिय होने लगी. इस किरदार से महिलाओं को प्रेरणा मिली कि वे चाहें, तो “महिला” के तमगे वाली पोशाकों से हटकर, कुछ अलग स्टाइल और फ़ैशन आज़मा सकती हैं.
Film still of Nargis and Raj Kapoor in Shree 420 (1955)मूल स्रोत: Raj Kapoor (Producer)
Film still of Nutan and Kishore Kumar in Dilli ka Thug (1958)मूल स्रोत: S.D Narang (Producer)
James Burke की Movie Queens (1941-11)LIFE Photo Collection
Nargis (1950s)Museum of Design Excellence
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Handloom Sari (2022)मूल स्रोत: MoDE
हैंडलूम साड़ी
भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित तरह-तरह की परंपराओं, रिवाजों, मान्यताओं, और रस्मों के चलते, आज के समय में हमारे आस-पास साड़ियों की कई वैरायटी मौजूद हैं. मुगल साम्राज्य के बाद, भारत में नए डिज़ाइनों की साड़ियों का प्रचलन बढ़ा. इनके रंग, कपड़े या पहनावे में कई तरह के बदलाव देखे गए.
हैंडलूम साड़ी
साड़ियों के ज़रिए, लोगों ने कई तरह की कहानियों को बयां किया. हालांकि, भारत की आज़ादी के संघर्षों की कहानियां, इनमें से सबसे ज़्यादा मशहूर हैं. इन कहानियों में, साड़ियों की मदद से देशप्रेम का भाव दिखाया गया. हाथ से बना खादी कपड़ा, स्वदेशी आंदोलन की निशानी था. 1940 और 1950 के दशक में, साड़ियों को बनाने के लिए इसी कपड़े का इस्तेमाल शुरू किया गया.
Nargis (c.1950)Museum of Design Excellence
Nutan (1940s)Museum of Design Excellence
James Burke की Indian Movie Queen (1963)LIFE Photo Collection
Nutan (1940s)Museum of Design Excellence
Film still of Sadhana in Parakh (1960)मूल स्रोत: Bimal Roy (Producer)
Meena Kumari in Saheb Biwi Aur Ghulam (1962)मूल स्रोत: Guru Dutt (Producer)
समय के साथ, मीना कुमारी, रेखा, और श्रीदेवी ने अपने अंदाज़ और स्टाइल में साड़ी को पहनना शुरू किया. साहिब, बीवी और गुलाम (1962) में मीना कुमारी की शानदार सिल्क बनारसी साड़ी, मिस्टर इंडिया (1987) में श्रीदेवी की पारदर्शी शिफ़ॉन साड़ी, एक दिन अचानक (1989) में शबाना आज़मी की साधारण और सुंदर सूती साड़ी, और ज़ुबैदा (2001) में रेखा की भव्य कांजीवरम साड़ी को, लोगों ने फ़ैशन, स्टाइल, और साड़ी को पहनने के तरीके के लिए आदर्श माना.
लेखक: Lisa LarsenLIFE Photo Collection
यह एक सामान्य हैंडलूम साड़ी है
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Slim Suit (2022)मूल स्रोत: MoDE
स्लिम फ़िट
चूड़ीदार कमीज़ पहनने की शुरुआत, पाकिस्तान और उत्तर भारत के इलाकों में हुई थी. हालांकि, टाईट-फ़िटिंग चूड़ीदार कमीज़ को लोकप्रिय बनाने में सबसे बड़ा योगदान, 1960 के दशक में अभिनेत्री साधना का रहा. कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर भानू अथैया के साथ, साधना ने यश चोपड़ा की फ़िल्म वक्त (1965) के लिए, एक स्लिम फ़िट चूड़ीदार सूट तैयार किया, जिसका कुर्ता छोटा और टाइट था. इस सूट में पूरा शरीर कसा हुआ दिखता था.
स्लिम फ़िट
साधना ने चूड़ीदार कमीज़ की इस नई डिज़ाइन के साथ मोजड़ी को पहना और एक ऐसा हेयरकट रखा जो बाद में उनके नाम से ही मशहूर हुआ. इस लुक ने 1960 के दशक में, बॉलीवुड में साधना की एक खास पहचान बनाई.
Film still of Sadhana and Sunil Dutt in Mera Saaya (1966)मूल स्रोत: Premji (Producer)
Mumtaz (1960s)Museum of Design Excellence
Film still of Minoo Mumtaz (1960s)Museum of Design Excellence
Hema Malini (c.1960s) (1960s)Museum of Design Excellence
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Lungi (2022)मूल स्रोत: MoDE
लुंगी
लुंगी एक प्लेन कपड़ा होता है जिसमें न तो कोई जोड़ होता है और न ही इसे सिला जाता है. इसे कमर पर लपेटकर पहना जाता है. यह मुख्य रूप से दक्षिण भारत का पहनावा है. ढीली-ढाली पोशाक होने की वजह से, लुंगी गर्म और नमी वाले मौसम में बहुत आरामदायक होती है. आम तौर पर, कॉटन या सिल्क से बनने वाली लुंगी को लेकर यह धारणा थी कि इसे सिर्फ़ पुरुष पहनते हैं. हालांकि, बॉक्स-ऑफ़िस हिट फ़िल्म हरे रामा हरे कृष्णा (1971) में, ज़ीनत अमान ने इसे बोहेमियन स्टाइल में पहनकर लोगों की सोच को बदल दिया.
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Lungi (2022)मूल स्रोत: MoDE
लुंगी
इस फ़िल्म में, उन्होंने चश्मे के साथ बड़े साइज़ की शर्ट पहनी थी. उनके इस लुक से, भारत में हिप्पी और फ़्री-फ़्लोइंग चलन को बढ़ावा मिला. साथ ही, यह ऐसा पहनावा था जिसे आम तौर पर, बॉलीवुड में महिलाओं के पहनावे के रूप में नहीं देखा जाता था.
Film still of Zeenat Aman in Hare Rama Hare Krishna (1971)मूल स्रोत: Dev Anand (Procuer)
Film poster of Deepika Padukone in Chennai Express (2013)मूल स्रोत: Ronnie Screwvala, Siddharth Roy Kapur, Gauri Khan & Karim Morani (Producers)
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Disco Dress (2022)मूल स्रोत: MoDE
डिस्को ड्रेस
यह बात 1980 के दशक की है, जब महिलाओं ने भारतीय फ़ैशन की दुनिया में बड़े पैमाने पर हिस्सा लेना शुरू किया. इस दशक में, कई तरह की संस्कृतियों ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा. बॉलीवुड में 1980 के दशक में, डिस्को के दौर को चमक-दमक और ग्लैमर से बयां किया जा सकता है. फ़िल्म कुर्बानी (1980) में, ज़ीनत अमान ने चमकीली, गहने वाली, और मटैलिक-फ़िट पोशाक पहनी थी, जिसके कंधे पर पैड लगे हुए थे. यह इस दशक का एक अहम बदलाव था.
डिस्को ड्रेस
ज़ीनत अमान की सुनहरी और मटैलिक पोशाक के बाद, इसी तरह के ग्लैमर वाली पोशाकें पर्दे पर दिखने लगीं. जैसे, शान (1980) में परवीन बॉबी की पोशाक, जांबाज़ (1986) में रेखा की पोशाक, और मिस्टर इंडिया (1987) में श्रीदेवी की पोशाक.
Parveen Babi (1980s)Museum of Design Excellence
MoDE की Zeenat Aman in Qurbani (1980) (2022)मूल स्रोत: MoDE
Film still of Sridevi in Mr India (1987)मूल स्रोत: Boney Kapoor & Surinder Kapoor (Producers)
Film still of Rekha in Khoon Bhari Maang (1988)मूल स्रोत: Rakesh Roshan (Producer)
Fill still of Rekha in Khoon Bhari Maang (1988)मूल स्रोत: Rakesh Roshan (Producer)
Priyanka Chopra (2022)Museum of Design Excellence
Film still of Rekha in Khoon Bhari Maang (1988)मूल स्रोत: Rakesh Roshan (Producer)
Film still of Zeenat Aman in Qurbani (1980)मूल स्रोत: Feroz Khan (Producer)
Parveen Babi (2022)Museum of Design Excellence
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Flareed Skirt (2022)मूल स्रोत: MoDE
फ़्लेयर्ड स्कर्ट
स्ट्रेट-कट स्कर्ट, न तो मर्मेड-कट स्कर्ट की तरह टाइट फ़िट होती है और न ही पारंपरिक भारतीय लहंगे की तरह ढीली-ढाली या खास तरह की बनावट वाली होती है. स्ट्रेट-कट स्कर्ट, कमर और पांव पर ढीली होती है, ताकि इसे पहनने पर चलने में आसानी हो.
फ़्लेयर्ड स्कर्ट
स्ट्रेट-लाइन स्कर्ट - यह एक ऐसी पोशाक है जिसे पश्चिमी देशों में प्रचलित ए-लाइन फ़्लेयर को ध्यान में रखकर बनाया गया था. इसे सबसे पहले, 1940 के दशक में बेगम पारा ने पहना था. हालांकि, फ़िल्म रंगीला (1995) में, उर्मिला मातोंडकर की पोशाक को बॉलीवुड की सबसे बेहतरीन स्ट्रेट-कट स्कर्ट में से एक माना जाता है, जिसके टॉप और स्कर्ट, दोनों लाल रंग के थे. कॉटन ब्लेंड से बनी उर्मिला की इस स्कर्ट में एक कट था, जो नीचे पैरों की लंबाई तक जाता था. इससे उनकी हर हलचल पर, उनके पैर छिपते और दिखते थे.
Begum Para (1940s)Museum of Design Excellence
Film still of Urmila Matondakar in Rangeela (1995)मूल स्रोत: Jhamu Sughand & Ram Gopal Varma (Producers)
Zeenat Aman (2022)Museum of Design Excellence
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Split Skirt (2022)मूल स्रोत: MoDE
स्प्लिट स्कर्ट
शरारा ड्रेस को भारत में सबसे पहली बार मुगल साम्राज्य के दौरान देखा गया था. इसके बाद, इसे कई बार 18वीं और 19वीं सदी में भी इस्तेमाल किया गया. आखिर में, 1940 और 1950 के दशक में, इसे फ़िल्मी पर्दे पर [स्थायी तौर पर] अपना लिया गया. यह ड्रेस एक लहराते हुए पैंट जैसी है, जो कमर के नीचे से खुली और ढीली-ढाली रहती है. यह ड्रेस सिल्क, शिफ़ॉन, वेलवेट, और कॉटन ब्लेंड जैसे कपड़ों से बनी होती है. इसमें, बीडवर्क और कढ़ाई के पहले से चले आ रहे तरीकों और पैटर्न का इस्तेमाल किया जाता है. इस वजह से, ड्रेस में संस्कृति की छाप मिलती है और हाथ से बनाए जाने का एहसास बना रहता है.
स्प्लिट स्कर्ट
शरारा को अलग-अलग लंबाई के कुर्तों के साथ पहना जाता है. यह तय करने का काम स्टाइलिस्ट और डिज़ाइनर का होता है कि शरारा को कैसे कुर्ते के साथ पहनना है. इसे जूही चावला, दीपिका पादुकोण, और करीना कपूर जैसी अभिनेत्रियों ने फ़िल्मी पर्दे पर पहना.
Katrina Kaif in Tees Maar Khan (2010)मूल स्रोत: Twinkle Khanna, Shirish Kunder & Ronnie Screwvala (Producers)
Film still of Kareena Kapoor in Kabhi Khushi Khabie Gham (2001)Museum of Design Excellence
MoDE की Silhouettes of Indian Style | The Cocktail Sari (2022)मूल स्रोत: MoDE
कॉकटेल साड़ी
डिज़ाइनर साड़ियों जैसी ये साड़ियां कुछ हद तक पारदर्शी होती हैं और इन्हें कमर से थोड़ा नीचे पहना जाता है. इन्हें बरोक स्टाइल वाली ब्रालेट-ब्लाउज़ के साथ पहना जाता है और खास तौर पर, आइटम नंबर करने वाली अभिनेत्रियां ये साड़ियां पहनती हैं. भारत में आर्थिक सुधारों को लागू करने के दौरान, लोगों को दुनिया में चल रहे फ़ैशन को देखने का मौका मिला. उस समय का फ़ैशन, खुले विचारों वाली सोच से जुड़ा था. पारंपरिक स्टाइल और आज के दौर के फ़ैशन के मेल से, ऐसी पोशाकें तैयार होती थीं जिन्हें दुनिया भर में काफ़ी पसंद किया जाता था.
कॉकटेल साड़ी
भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री का विकास, 80 और 90 के दशक के आखिर में हुआ. ऐसे में, फ़ैशन इंडस्ट्री के बड़े-बड़े डिज़ाइनर और स्टाइलिस्ट के ऊपर, अभिनेताओं के पहनावे और लुक की काफ़ी ज़िम्मेदारी थी.
Film still of Deepika Padukone in Yeh Jawani Hai Deewani (2013)मूल स्रोत: Hiroo Yash Johar & Karan Johar (Producers)
Film still of Deepika Padukone in Cocktail (2012)मूल स्रोत: Saif Ali Khan & Dinesh Vijan (Producers)
Film still of Sonam Kapoor in I Hate Luv Stories (2010)मूल स्रोत: Hiroo Yash Johar, Karan Johar & Ronnie Screwvala
Film still of Jacqueline Fernandez in Housefull 2 (2012)मूल स्रोत: Sajid Nadiadwala (Producer)
आर्ट डायरेक्टर: दिव्या ठाकुर
फ़ोटोग्राफ़र: रिड बर्मन
डिज़ाइनर और स्टाइलिस्ट: अमृता ठाकुर
हेयर स्टाइलिस्ट: अधुना भबानी
मेक-अप आर्टिस्ट: क्लिंट फ़र्नेंडिस
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